Hindi, asked by beautytiwary5611, 10 months ago

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पंडित जवाहरलाल नेहरू पर 80 शब्दों का अनुच्छेद लिखिए।​

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Answered by harshalpatil25
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Answer:

पं० जवाहरलाल नेहरु का जन्म एक अमीर घराने में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर प्राप्त की। वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। वहाँ से लौटकर वह बैरिस्टर हो गए लेकिन उन्होंने वकालत नहीं की।

वह अपने देश को आज़ाद कराना चाहते थे। उनमें देश-भक्ति कूट-कूट कर भरी थी। वह महात्मा गाँधी के संपर्क में आये। उनके जीवन में एक महान परिवर्तन हुआ। वह स्वतंत्रता-संग्राम में कूद पड़े। उन्हें अनेक यातनाएं सहनी पड़ी। कई बार उनको जेल भेजा गया।

सन 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली। नेहरूजी को प्रथम प्रधानमन्त्री चुना गया। उन्होंने देश की गरीबी को दूर करने का प्रयत्न किया। वह भारत में समाजवाद का स्वप्न देखते थे। वे अपना सारा समय देश की समस्याओं को सुलझाने में व्यतीत करते थे। अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए सभी राष्ट्र उनकी ओर देखते थे।

Answered by abhishekverma51
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Answer:

पं. जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर, 1889 को प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था । इनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था । मोतीलाल नेहरू एक प्रसिद्ध वकील थे । वे काफी संपन्न व्यक्ति थे । बाद में उन्होंने देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया था ।

जवाहर लाल की माता का नाम श्रीमती स्वरूप रानी था । माता-पिता के इकलौते पुत्र होने के कारण बालक जवाहर लाल को घर में काफी लाड़-प्यार मिला । इसकी

प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई । घर पर इन्हें पढ़ाने के लिए एक अंग्रेज शिक्षक को नियुक्त किया गया था । 15 वर्ष की आयु में जवाहर लाल को शिक्षा प्राप्ति के लिए इंग्लैण्ड भेज दिया । वहाँ इन्होंने हैरो स्कूल में, फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया । सन् 1912 ई. में बैरिस्ट्री की परीक्षा उत्तीर्ण कर वे भारत लौट आए । 1915 में जवाहर लाल कमला नेहरू के साथ विवाह-सूत्र में बँध गए ।

स्वदेश लौटने पर नेहरू जी ने वकालत आरंभ की परंतु उसमें उनका चित्त नहीं रहा । भारत की परतंत्रता उनके मन में काँटे की तरह चुभती थी । उन्होंने इंग्लैण्ड का स्वतंत्र वातावरण देखा था, उसकी तुलना में भारत दीन – हीन देश था । यहाँ की दीन दशा के लिए अंग्रेजों की नीति जिम्मेदार थी । उधर पंजाब में हुए जलियाँवाला हत्याकाँड ने उनके मन को झकझोर कर रख दिया । नेहरू जी ने पहले होमरूल आदोलन में भाग लिया, फिर गाँधी जी के नेतृत्व में चल रहे अहिंसात्मक आदोलन में सक्रिय सहयोग देने लगे । राजसी ठाठ-बाट छोड्‌कर खादी का कपड़ा पहना और सत्याग्रही बन गए । असहयोग आदोलन में बढ़-चढ़ कर भागीदारी की । इसके बाद उन्होंने संपूर्ण जीवन देश की सेवा में अर्पित कर दिया । 1920 से लेकर 1944 तक अनेक बार जेलयात्राएँ कीं और यातनाएँ सहीं ।

सन् 1929 में लाहौर अधिवेशन में जवाहर लाल जी कांग्रेस के अध्यक्ष बने । नेहरू जी ने इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य की माँग की । अपनी कार्य – क्षमता और सूझ-बूझ से उन्होंने कांग्रेस को नई दिशा दी । उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष कई बार बनाया गया । नेहरू जी ने 1942 के भारत छोड़ो आदोलन में सक्रिय भागीदारी की और तीन वर्ष तक कारावास मैं रहे ।

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