Hindi pick in rakshabandhan
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रक्षाबंधन पर निबंध
प्रस्तावना
रक्षा बंधन वह उत्सव है जिसे भाई-बहन के इस पवित्र रिश्ते उपलक्ष्य में मानाया जाता है, यह त्योहार सावन के शुभ महीने में आता है। इस दिन बहन द्वारा अपने भाई के कलाई पर एक पवित्र धागा बांधा जाता है और उनके अच्छे स्वास्थ्य तथा भविष्य की कामना की जाती है। वही दूसरी तरफ भाइयों द्वारा अपनी बहनों को आशीर्वाद तथा रक्षा का वचन दिया जाता है। यह त्योहार प्राचीन काल से ही काफी धूम-धाम से मनाया जा रहा है।
रक्षा बंधन की पौराणिक कथाएं
वैसे तो रक्षा बंधन के पर्व का वर्णन कई सारी पौराणिक कथाओं में मिलता है। जिससे की यह पता चलता है कि यह प्राचीन काल से ही मनाया जा रहा है। इससे जुड़ी प्राचीन काल की कथाओ से पता चलता है कि यह त्योहार ना सिर्फ सगे भाई-बहनों बल्कि की चचेरे भाई-बहनों में भी मनाया जाता था। इस पवित्र त्योहार से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं इस प्रकार से हैः
इंद्र देव की दंतकथा
प्राचीन हिन्दू पुस्तकों में से एक भविष्य पुराण के अनुसार जब एक बार आकाश और वर्षा के देवता इन्द्र ने दानवों के राजा बलि से युद्ध किया तो दानवराज बलि के हाथो उन्हे बुरे तरह से पराजय का सामना करना पड़ा। इन्द्र को इस अवस्था में देखकर उनकी पत्नी साची ने भगवान विष्णु से अपनी चिंता व्यक्त की तब उन्होने एक पवित्र धागा साची को दिया और उसे इन्द्र की कलाई पर बांधने के लिए कहा। जिसके बाद साची ने उस धागे को अपने पती के कलाई पर बांध दिया और उनके लम्बे जीवन तथा सफलता की कामना की इसके पश्चात इंद्र ने चमत्कारिक रुप से बलि को हरा दिया। ऐसा कहा जाता है कि रक्षा बंधन का यह पर्व इसी घटना से प्रेरित है। राखी को एक रक्षा करने वाला धागा माना जाता है, पहले के समय में यह पवित्र धागा राजाओ और योद्धाओ को उनके बहनों और पत्नियों द्वारा युद्ध में जाने के पहले उनकी रक्षा के लिए बांधा जाता था।
जब देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को पवित्र धागा बांधा
ऐसा कहा जाता है कि जब दानव राज बलि ने जब भगवान विष्णु से तीन लोक जीत लिए थे, तब बलि ने नरायण को अपने साथ रहने के लिए कहा इस बात पर भगवान विष्णु तैयार हो गये, लेकिन देवी लक्ष्मी को उनका यह फैसला पसंद नही आया। इसलिए उन्होंने राजा बलि को राखी बांधने का निश्चय किया, इसके बदले में जब बालि ने उनसे कुछ मांगने को कहा तो देवी लक्ष्मी ने उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को बैकुंठ वापस भेजेने के लिए कहा और भला दानवराज बलि अपने बहन को ना कैसे कह सकते थे। तो हमे पता चलता है कि इस पवित्र धागे की ऐसी भी शक्तियां है, जिनका वर्णन हिंदू पुराणो में किया गया है।
कृष्ण और द्रौपदी का पवित्र बंधन
ऐसा कहा जाता है कि शिशुपाल का वध करते वक्त गलती से भगवान श्री कृष्ण की उंगली में चोट लग गयी थी और उससे खून निकलने लगा था। तब द्रौपदी ने दौड़कर अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया। द्रौपदी के इस कार्य ने भगवान श्री कृष्ण के दिल को छू लिया और उन्होंने द्रौपदी को रक्षा का वचन दिया, उसके बाद से द्रौपदी हर वर्ष श्री कृष्ण को राखी रुपी पवित्र धागा बांधने लगी। जब द्रौपदी का कौरवो द्वारा चीर-हरण किया जा रहा था, तब भगवान श्री कृष्ण ने ही द्रौपदी की रक्षा की थी, जिससे दोनो के बीच भाई-बहन के एक बहुत ही विशेष रिश्ते का पता चलता है।
रक्षा बंधन पर रविन्द्र नाथ टैगोर के विचार
प्रसिद्ध भारतीय लेखक रविन्द्र नाथ टैगोर का मानना था, रक्षा बंधन सिर्फ भाई-बहन के बीच के रिश्ते को मजबूत करने का ही दिन नही है बल्कि इस दिन हमे अपने देशवासियो के साथ भी अपने संबध मजबूत करने चाहिये। यह प्रसिद्ध लेखक बंगाल के विभाजन की बात सुनकर टूट चुके थे, अंग्रेजी सरकार ने अपनी फूट डालो राज करो के नीती के अंतर्गत इस राज्य को बांट दिया था। हिन्दुओ और मुस्लिमों के बढ़ते टकराव के आधार पर यह बंटवारा किया गया था। यही वह समय था जब रविन्द्र नाथ टैगोर ने हिन्दुओ और मुस्लिमों को एक-दूसरे के करीब लाने के लिए रक्षा बंधन उत्सव की शुरुआत की, उन्होने दोनो ही धर्मो के लोगो से एक दूसरे को यह पवित्र धागा बांधने और उनके रक्षा करने के लिए कहा जिससे दोनो धर्मो के लोगो के बीच संबंध प्रगाढ़ हो सके।
पश्चिम बंगाल में अभी भी लोग एकता और सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए अपने दोस्तो और पड़ोसियो को राखी बांधते है।
निष्कर्ष
राखी का भाईयों-बहनो के लिए एक खास महत्व है। इनमें से कई सारे भाई-बहन एक-दूसरे से व्यावसायिक और व्यक्तिगत कारणो से मिल नही पाते, लेकिन इस विशेष अवसर पर वह एक-दूसरे के लिए निश्चित रुप से समय निकालकर इस पवित्र पर्व को मनाते है, जो कि इसकी महत्ता को दर्शाता है।