hindi poem on save wild animals
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Explanation:
पंपापुर में रहती थी जी
एक बिल्ली सैलानी,
सुंदर-सुंदर, गोल-मुटल्ली
लेकिन थी वह कानी।
बड़े सवेरे घर से निकली
एक दिन बिल्ली कानी,
याद उसे थे किस्से प्यारे
जो कहती थी नानी।
याद उसे थीं देश-देश की
रंग-रंगीली बातें,
दिल्ली के दिन प्यारे-प्यारे
या मुंबई की रातें।
मैं भी चलकर दुनिया घूमूँ-
उसने मन में ठानी,
बड़े सवेरे घर से निकली
वह बिल्ली सैलानी
गई आगरा दौड़-भागकर
देखा सुंदर ताज,
देख ताज को हुआ देश पर
बिल्ली को भी नाज।
फिर आई मथुरा में, खाए
ताजा-ताजा पेड़े,
आगे चल दी, लेकिन रस्ते
थे कुछ टेढ़े-मेढ़े।
लाल किला देखा दिल्ली का
लाल किले के अंदर,
घूर रहा था बुर्जी ऊपर
मोटा सा एक बंदर।
भागी-भागी पहुँच गई वह
तब सीधे कलकत्ते,
ईडन गार्डन में देखे फिर
तेंदुलकर के छक्के!
बैठी वहाँ, याद तब आई
नानी, न्यारी नानी,
नानी जो कहती थी किस्से
सुंदर और लासानी।
घर अपना है कितना अच्छा-
घर की याद सुहानी,
कहती-झटपट घर को चल दी
वह बिल्ली सैलानी।
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जानवरों का मेला है!
वन का बाघ दहाड़ता,
हाथी खड़ा चिंघाड़ता।
गधा जोर से रेंकता,
कूकूर ‘भों-भों’ भौंकता।
बड़े मजे की बेला है,
जानवरों का मेला है।
गैा बँधी रँभाती है,
बकरी तो मिमियाती है।
घोड़ा हिनहिनाए कैसा,
डोंय-डोंय डुंडके भैंसा।
बढ़िया रेलम-रेला है,
जानवरों का मेला है!
आदमी क्यूँ बदल रहा चाल-ढाल है
जगह जानवर की लेने को तैयार है
पहले तो मिल जाती थी जूठन या रोटी दो
अब आदमी चाहता है बस इनकी बोटी हो
फिरते है य़े आवारा कुत्ते बिल्लियाँ
विभिन्न जाति के य़े मवेशियां
भूख इनकी भी होती है तीव्र
अब तो जूठन भी भाग में न आये
भले अन्न निर्जीव डिब्बो में दाल दिए जाए
मासूम य़े भी है कौन य़े समझाए
आदमी हो आमदनी, सबसे वफादारी निभाये
चिंतित है अब पशु समाज कैसे य़े बताये
आदमी को आखिर कैसे दे राय
मुश्किल है मलाल है, न बोलने से हलाल है
बस निकले दम रोज और बिखरे खाल है
Explanation:
यह कुत्ता पर poem hai maybe helpful for you