Hindi poem on Why no To Crackers
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बीत गई दीवाली ….
बीत गए ज़जबात,
पर जान न सका कोई …
इन “पटाखों” के सच की बात ।
लाखों पटाखे सुबह रोड पर जले पड़े थे ,
लोगों की “अमीरी” की शान के किस्से भरे पड़े थे ।
किसी ने कहा कि- बीती रात “दो लाख” में आग लगायी ,
और किसी ने कहा कि -ऐसी मद भरी दिवाली पहले कभी न बनायी ।
पर किसी ने ये न सोचा …..
कि कौन था इन पटाखों को बनाने के पीछे ?
कितनी रात जाग कर मेहनत की होगी उसने ……
ताकि वो अपने भूखे पेट को सींचे ।
हाँ ज़रा सोच कर देखो …..तो एक बार ,
दिल न दहल जाए तुम्हारा तो कहना– कि है मेरी “हार”।
वो नन्हे-नन्हे हाथ कैसे बारूद भरा करते होंगे ?
अपने “मालिक” के कितने ताने …..दिन-रात सुना करते होंगे |
कोई क्या जाने कि उनकी आँखों में भी “सपने” होंगे ……
जिनको पाने की खातिर, वो तन-मन से “मेहनत” करते होंगे ।
पटाखों की फैक्ट्री जाकर देखा तो, मैंने ये पाया ….
वो “Child Labour ” जो ban है ….वो फिर से अपने ज़ोरों पर था गरमाया ।
मालिक कहता कि -दिवाली में दिन हैं बचे केवल चार ,
और माल न बना तो सबको पड़ेगी मार ।
बेचारे नन्हे -नन्हे बच्चे सहमे से मेहनत करते ….
दिन-रात एक लगाकर अपनी नींदों को हराम करते ।