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"सरकार द्वारा बाल श्रम को रोकने हेतु चलाए गए अभियान कहाँ तक सफल विषय पर अनुच्छेद लिखें
और कक्षा में विचार प्रस्तुति दीजिए।
Who will answer will be brailest
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बाल श्रम को नियंत्रण करने तथा उनके कार्य के घंटों को निश्चित करने के लिए सर्वप्रथम कारखाना अधिनियम 1881 में बनाया गया । 1929 में कार्यरत बच्चों की आयु सीमा के निर्धारण के लिए एक आयोग का गठन किया गया जिसके सुझावों के आधार पर 1933 में बाल श्रम अधिनियम बनाया गया जिसमें 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को श्रम कार्यों में लगाने पर रोक लगाई गई । 1048 के कारखाना अधिनियम में बाल मजदूरों के लिए सुरक्षा प्रदन की गई । भारत सरकार की नीति कारखानों तथा जोखिमपूर्ण कार्यों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चो के रोजगार पर संविधान के उपबंधों के अनुसार प्रतिबंधों के अनुसार प्रतिबंध लगाना हैं तथा कार्यरत बच्चों के कार्य की दशाओं को नियमित करना है । 1986 के बाल मजदूर अधिनियम में इस उद्येश्य को प्राप्त करने की व्यवस्था है । धारा – 18 (1) के अधीन बनाए गए नियमों को 1988 में अधिसूचित किया गया । इस अनुसूची में 6 व्यवसाय हैं जिसमे बच्चों को रोजगार पर लगाना प्रतिबंधित है । इसके अतिरिक्त सरकार ने एक राष्ट्रीय नीति तैयार की है, जिसका उद्देश्य है - जिन क्षेत्रों में बाल मजदूरों की संख्या अधिक है वहाँ उनके कल्याण की विभिन्न आवश्यकता के लिए परियोजनाएँ शुरू करना, जैसे व्यवसायिक प्रशिक्षण, गैर- औपचारिक शिक्षा, पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य की देखभाल आदि । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वयंसेवी संगठनों को वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने दस वर्षो तक तैयारी के बाद 20 नवम्बर, 1989 को बच्चों के अधिकार संबंधी समझौते को स्वीकार किया । इस समझौते का प्रावधान 18 वर्ष से पहले कानूनी वयस्कता पाने वाले देशों के बच्चों को छोड़ कर इस उम्र के शेष सभी बच्चों पर लागू होगा । 20 देशों का समर्थन होने पर यह समझौते अस्तित्व में आएगा । अभी इसमें 7 देश हैं – घाना, वियतनाम, वेटिकन, बेलिज, ग्वाटेमाला, इक्वेडोर और फ़्रांस ।
बच्चों के समस्याओं में विचार करने हेतु एक महत्वपूर्ण अंतराष्ट्रीय प्रयास उस समय हूआ जब अक्टूबर 1990 में न्यूयार्क में इस विषय पर एक विश्व शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें 151 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया तथा गरीबी, कुपोषण व भूखमरी के शिकार दुनिया भर के करोड़ों बच्चों की समस्याओं पर विचार - विमर्श किया गया है ।
इतने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बाद भी बाल श्रमिकों की संख्या तथा समस्या उत्तरोतर बढ़ती जा रही है । श्रम कानूनों की विफलता का सबसे बड़ा कारण यह है की उनका प्रभाव क्षेत्र केवल संगठित क्षेत्रों में ही सीमित है । जबकि अधिसंख्यक बाल श्रमिक (70 प्रतिशत) असंगठित क्षेत्रों से ही संबध हैं जहाँ हमारे कानूनों की पहुँच नहीं होती ।
हमारे संविधान में 14 वर्ष तक नि: शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान हैं । यदि इस कानून को सख्ती से लागू किया जाए तो बाल श्रमिकों की बढ़ती हुई संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है । प्रसिद्ध न्यायवेता डॉ. एल. एम्. सिंघवी का कहना है की बाल श्रमिक समस्या को जो प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी, वह नहीं प्रदान की गई । उनकी स्थिति को सुधरने हेतु बनाई जाने वाली योजनाएँ राजनैतिक इच्छा के अभाव में कागज पर ही रह जाती हैं । इनका सुझाव था की इस कार्य के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाना चाहिए जिससे वह प्रभावी रूप से कार्य कर सके ।
बाल श्रमिकों की नियुक्ति पर यद्यपि प्रतिबंधों की मांग की जाती है तथापि ऐसा प्रतिबंध संभव नहीं हो सका है । वर्त्तमान आर्थिक- सामाजिक संरचना में ऐसा प्रतिबंध संभव भी नहीं समझा जाता है, फिर भी इस समस्या को कम करने में शिक्षा का प्रसार उद्योगों के संगठित क्षेत्र को प्रोत्साहन, सार्वजनिक दबाव तथा प्रभावकारी कानूनों को दृढ़ता से लागू करने की आवश्यकता है । तभी हम अधिसंख्यक बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं ।
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अपने देश के समक्ष बालश्रम की समस्या एक चुनौती बनती जा रही है। सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम भी उठाये हैं। समस्या को विस्तार और गंभीरता से देखते हुए इसे एक सामाजिक-आर्थिक समस्या माना जा रहा है जो चेतना की कमी, गरीबी और निरक्षरता से जुड़ी हुई है। इस समस्या के समाधान हेतु समाज के सभी वर्गों द्वारा सामूहिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल-मज़दूरी की समस्या और उससे निज़ात दिलाने हेतु उपाय सुझाने के लिए 'गुरुपाद स्वामी समिति' का गठन किया था। समिति ने समस्या का विस्तार से अध्ययन किया और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। उन्होंने देखा कि जब तक गरीबी बनी रहेगी तब तक बाल-मजदूरी को हटाना संभव नहीं होगा। इसलिए कानूनन इस मुद्दे को प्रतिबंधित करना व्यावहारिक रूप से समाधान नहीं होगा। ऐसी स्थिति में समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए तथा अन्य क्षेत्रों में कार्य के स्तर में सुधार किये जाए। समिति ने यह भी सिफारिश की कि कार्यरत बच्चों की समस्याओं को निपटाने के लिए बहुआयामी नीति बनाये जाने की जरूरत है।