Hindi, asked by shekar89, 1 year ago

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Answered by ksbarejiya
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ये कविता एक ऐसे व्यक्ति की प्रार्थना है जो स्वयं सुब कुछ करना चाहता है। किसी हारे हुए जुआरी की तरह वह सब कुछ भगवान भरोसे नहीं छोड़ना चाहता है। उसका अपने आप पर पूरा भरोसा है। उसे भरोसा है कि वह हर मुसीबत का सामना कर सकता है और भगवान से सिर्फ मनोबल पाने की इच्छा रखता है।जब दुख से मन व्यथित हो जाए तब उसे ईश्वर से सांत्वना की अभिलाषा नहीं है, बल्कि वह ये प्रार्थना करता है कि उसे हमेशा दुख पर विजय प्राप्त होकहीं किसी से मदद ना मिले तो भी उसका पुरुषार्थ नहीं हिलना चाहिए। लाभ की जगह कभी हानि भी हो जाए तो भी मन में अफसोस नहीं होना चाहिए।वह भगवान से अपनी जिम्मेदारियाँ कम करने की विनती नहीं करता। वह तो इतनी दृढ़शक्ति चाहता है जिससे वह जीवन के भार को निर्भय उठाकर जी सके।ये संदेश दिया गया है कि सफलता के नशे में चूर होकर ईश्वर को भूलना नहीं चाहिए। हर उस व्यक्ति को याद रखना चाहिए जिसने आपको सफल बनाने में थोड़ा भी योगदान दिया हो। जब मेरे दिन बहुत बुरे चल रहे हों और पूरी दुनिया मुझ पर अंगुली उठा रही हो तब भी ऐसा न हो कि मैं तुमपर कोई शक करूँ।


एक कहावत है कि भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनई मदद खुद करता है। किस्मत के ताले की एक ही चाभी है और वो है कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प। ईश्वर का काम है मनोबल और मार्गदर्शन, लेकिन अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए आपको चलना तो खुद ही पड़ेगा।

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