Hindi, asked by divya8165, 11 months ago

hundi essay on bartiye udoyogik vikas ​

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Answered by argupta0904
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भारतीय विकास दर की एक आलोचना यह होती थी कि इसमें मुख्य योगदान सेवाओं का हैं । कृषि उत्पादन की वृद्धि दर तो काफी कम है ही, उद्योगों की वृद्धि दर भी कम है । लेकिन हाल के वर्षो में औद्योगिक वृद्धि दर फिर से ऊंचे स्तर पर पहुंच गयी है ।

दावा किया जा रहा है कि इस बार की तेजी स्थायी है । भारत अब चीन, दक्षिण कोरिया आदि ऊंची औद्योगिक वृद्धि दरों वाले देशों की श्रेणी में आ गया है । मगर औद्योगिक प्रगति के इन आकड़ों से पूरी तस्वीर साफ नहीं होती है । गहराई में जाने पर पता चलता है कि इन उपलब्धियों के पीछे बहुत सारी विडंबनाएं, विषमताएं और विकृतियां छिपी हैं ।

पहली बात तो यह है कि प्रगति सारे उद्योगों में एक-सी नहीं है । वाहनों, रत्न और आभूषणों, रसायनों, दवाइयों, इस्पात, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं, मशीनरी, पेय पदार्थ, सिगरेट-गुटखा आदि में प्रगति बहुत प्रभावशाली रही है । लेकिन जूट और अन्य रेशा उद्योग, कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, खाद्य सामग्री, लकड़ी उद्योग, धातु उत्पाद और पुर्जे आदि में वृद्धि दरें या तो बहुत कम या ऋणात्मक रही हैं । निराशाजनक स्थिति वाले ये उद्योग ज्यादा श्रम-प्रधान हैं यानी अधिक रोजगार देने वाले उद्योगों की हालत खराब है और कम रोजगार देने वाले उद्योगों की प्रगति अच्छी है ।

देश के अनेक हिस्सों में कपड़ा मिलें, जूट मिलें, चीनी मिलें, तेल मिलें आदि बंद पड़ी हैं और लाखों मजदूर बेरोजगार हो गये है । इसी प्रकार, औद्योगिक विकास छोटे और कुटीर उद्योगों की कीमत पर हो रहा हैं चाहे आंध्र प्रदेश के बुनकर हों, बनारसी साड़ी के कारीगर, लुधियाना का खेल-सामग्री उद्योग हो या अलीगढ़ का ताला उद्योग या विभिन्न इलाकों में फैली बरतन उद्योग की छोटी-छोटी इकाइयां, सब संकट में हैं । हालांकि लघु उद्योगों के समग्र आकड़ों में यह गिरावट नहीं दिखाई देती, मगर यह एक ऐसा सच है जो दृष्टिगत करने पर नजर आता है ।

उदारीकरण की नयी व्यवस्था में लघु उद्योगों की सुरक्षा तेजी से खत्म की जा रही है । जहां 1984 में 873 वस्तुओं का उत्पादन लघु उद्योगों के लिए आरक्षित था, वही 22 जनवरी 2007 के सबसे ताजा ‘अनारक्षण आदेश’ के बाद इनकी संख्या मात्र 239 रह गयी है ।

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argupta0904: hey
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