Hindi, asked by Anonymous, 11 months ago

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जनसंख्या की समस्या पर निबंध

in hindi

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Answered by sneha6727
17
Hope it's help u ☺️☺️☺️
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Anonymous: thank you
sneha6727: your welcome
Answered by Anonymous
11
Heya Mate !!!

Here's Your Answer ⏬

स्वतंत्रता के इन चार दशक से अधिक वर्षों में हमारे देश ने आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और औद्योगिक आदि क्षेत्रों में प्रगति की है । इस यांत्रिक युग में उत्तम स्वास्थ्य नई-नई औषधि की देन है । फलत: मानव के अन्दर स्वाभाविक रूप से प्रजनन प्रक्रिया में वृद्धि हो गई है ।

देखा जाए तो मानव जीवन की समस्त प्रसन्नता उसके परिवार में निहित होती है । किन्तु यदि परिवार सीमा से अधिक विस्तृत हो जाए तो यही सुख अभिशाप बन जाता है । हमारे देश के जनगणना के आँकडों को देखकर हमें, दाँतो तले उँगली दबानी पड़ती है क्योंकि विगत दस वर्षों में दस करोड़ से अधिक आबादी बड़ी है और इसकी गति में कोई विराम नहीं आया है ।

प्रत्येक दशक में बढ़ने वाली जनसंख्या आस्ट्रेलिया महाद्वीप की कुल जनसंख्या से 6 प्रतिशत अधिक बच्चे हर दस वर्ष में उत्पन्न होते है । प्रति सहस्त्र जनसंख्या में वृद्धि की दर भी बढ़ती जा रही है । जिस तीव्र गति से हमारे राष्ट्र की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है । उसके अनुसार 2000 ई. में यह जनसंख्या अनुमानत: 90 करोड़ से अधिक हो जाएगी ।

इस ब्रह्माण्ड में चीन के वाद जनसंख्या की दृष्टि से हमारा दूसरा नम्बर है । उत्तरोत्तर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए आहार, वस्त्र, आवास, शिक्षा और रोजगार का प्रबन्ध करना हमारी सरकार के लिए दु:साध्य हो गया है ।

देश की जनसंख्या तो गुणोत्तर अनुपात ( 2 : 4 : 8 ) से बढ़ती है जबकि कृषि की पैदावार अंकगणितीय अनुपात ( 1 : 2 : 3 : 4 ) से बढ़ती है । इससे देश में बेकारी की समस्या के साथ भुखमरी की समस्या फैलती है । यही कारण है कि हमारे देश में अधिकांश लोग निर्धनता की गोद में जाकर दम तोड़ते जा रहे हैं ।

हमारे देश में निर्धनता, अंधविश्वास, अशिक्षा, धार्मिक विश्वास, भ्रामक धारणाएँ और स्वास्थ्य के प्रति अवैधानिक दृष्टिकोण जनसंख्या वृद्धि के कारण हैं । इसके कारण भारतीय संतानोत्पत्ति ईश्वरीय वरदान समझते हैं और कृत्रिम उपायों से गर्भ निरोध उनकी दृष्टि में पाप है ।

वास्तव में, देखा जाए तो यह एक सामाजिक समस्या है जिसका धर्म के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । इस ब्रह्माण्ड का कोई भी धर्म मानव को बिना सोचे-विचारे पारिवारिक व्यवस्था चलाने की आज्ञा नहीं देगा । प्रत्येक धर्म का एक ही मूल अंत है और वह है जनकल्याण । यह तभी सम्भव है जबकि मानव अपने सामर्थ्य के अनुसार परिवार को बढ़ाए । ऐसी स्थिति में ही बच्चों का सही रूप में लालन-पालन हो सकेगा। उन्हें अच्छी शिक्षा मिल सकेगी और वे देश के स्वस्थ नागरिक बन सकेंगे ।

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