i.
(क) कीदृशः नरः न शोभते? (ख) तपोदत्तः कैः गर्हितः अभवत् ?
18.अधोलिखितस्य लोकस्य अन्वयम् उचितपदैः पूरयत- [/2x4=2]
वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततंस्तु हतो हतः।।
अन्वयः- वृतं (i) संरक्षेत् वित्तं तु जीवने (ii) याति च। (यदि कोऽपि)
वित्ततः (ii),
भवति तदा तस्य किमपि नष्टं न भवति। किन्तु यदि कोऽपि (iv)
क्षीणः भवति तदा सः पुनः सम्मानं न प्राप्नोति।
मञ्जूषाः- [क्षीणः एति वृत्ततः यत्नेन]
अथवा (OR)
अधोलिखितस्य लोकस्य भावार्थ मञ्जूषायाः सहायतया पूरयत-
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
प्रथमं श्रुणुत पश्चात् तत्
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।।
भावार्थ:- महात्मा अकथयनत् यत् हे जनाः! धर्मस्य (i)
जीवनेषु धारयत। (ii)
सारोऽस्ति यत् (iii)
विपरीतम् आचरणं कदापि
अन्येभ्यः (iv).
न कुरुत। अर्थात् यदाचरणं भवतां कृते उचितं हितकरं वा न
स्यात् तदन्येषां कृते न कुरुत।
[मञ्जूषाः- जनेभ्यः धर्मस्य सारम् आत्मनः]
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Answer:
मूर्ति संगमरमर की थी टोपी के नोक से 4:00 तक एक दूसरे के बटन तक कोई फटी होती है जिसे कहते हैं बस और सुंदर थी नेताजी सुंदर लग रहे थे कुछ कुछ मासूम और कम सिंह फौजी वर्दी में मूर्ति को देख कर दिल्ली चलो और तुम मुझे खून दो वगैरा याद आने लगते थे इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था केवल एक चीज की कदर थी जो दिखते ही करती थी नेताजी की आंखों पर चश्मा नहीं था यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था एक सामान्य सचमुच के का चोरा काला प्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था हालदार साहब जब पहली बार इस गुजरी और चौराहे पर पान खाने रुके तब उन्होंने इसे लक्षित किया और उन्हें ने चेहरा क्यों कस्तूर भरी मुस्कान फैल गई हां भाई यह इंडिया भी ठीक है मूर्ति पत्थर की पर चश्मा रियल
a) प्रस्तुत अवतरण में मूर्ति संगमरमर की थी टोपी के नोक से 4:00 तक एक दूसरे के बटन तक कोई फटी होती है जिसे कहते हैं बस और सुंदर थी नेताजी सुंदर लग रहे थे कुछ कुछ मासूम और कम सिंह फौजी वर्दी में मूर्ति को देख कर दिल्ली चलो और तुम मुझे खून दो वगैरा याद आने लगते थे इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था केवल एक चीज की कदर थी जो दिखते ही करती थी नेताजी की आंखों पर चश्मा नहीं था यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था एक सामान्य सचमुच के का चोरा काला प्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था हालदार साहब जब पहली बार इस गुजरी और चौराहे पर पान खाने रुके तब उन्होंने इसे लक्षित किया और उन्हें ने चेहरा क्यों कस्तूर भरी मुस्कान फैल गई हां भाई यह इंडिया भी ठीक है मूर्ति पत्थर की पर चश्मा रियल
a) प्रस्तुत अवतरण में किसकी बात की जा रही है और क्यों ?
(पाठ नेता जी का चश्मा) बात की जा रही है और क्यों ?
(पाठ नेता जी कामूर्ति संगमरमर की थी टोपी के नोक से 4:00 तक एक दूसरे के बटन तक कोई फटी होती है जिसे कहते हैं बस और सुंदर थी नेताजी सुंदर लग रहे थे कुछ कुछ मासूम और कम सिंह फौजी वर्दी में मूर्ति को देख कर दिल्ली चलो और तुम मुझे खून दो वगैरा याद आने लगते थे इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था केवल एक चीज की कदर थी जो दिखते ही करती थी नेताजी की आंखों पर चश्मा नहीं था यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था एक सामान्य सचमुच के का चोरा काला प्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था हालदार साहब जब पहली बार इस गुजरी और चौराहे पर पान खाने रुके तब उन्होंने इसे लक्षित किया और उन्हें ने चेहरा क्यों कस्तूर भरी मुस्कान फैल गई हां भाई यह इंडिया भी ठीक है मूर्ति पत्थर की पर चश्मा रियल
a) प्रस्तुत अवतरण में मूर्ति संगमरमर की थी टोपी के नोक से 4:00 तक एक दूसरे के बटन तक कोई फटी होती है जिसे कहते हैं बस और सुंदर थी नेताजी सुंदर लग रहे थे कुछ कुछ मासूम और कम सिंह फौजी वर्दी में मूर्ति को देख कर दिल्ली चलो और तुम मुझे खून दो वगैरा याद आने लगते थे इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था केवल एक चीज की कदर थी जो दिखते ही करती थी नेताजी की आंखों पर चश्मा नहीं था यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था एक सामान्य सचमुच के का चोरा काला प्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था हालदार साहब जब पहली बार इस गुजरी और चौराहे पर पान खाने रुके तब उन्होंने इसे लक्षित किया और उन्हें ने चेहरा क्यों कस्तूर भरी मुस्कान फैल गई हां भाई यह इंडिया भी ठीक है मूर्ति पत्थर की पर चश्मा रियल
a) प्रस्तुत अवतरण में किसकी बात की जा रही है और क्यों ?
(पाठ नेता जी का चश्मा) बात की जा रही है और क्यों ?
(पाठ नेता जी का चश्मा)
चश्मा)