I need an essay on man ke Harre har hai man ke Jeete jeet hai in about 2000 words.not copied from the internet
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“जो भी परिस्थितियाँ मिलें, काँटे चुभें कलियाँ खिले,
हारे नहीं इंसान, है संदेश जीवन का यही
कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे जीत के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं और अंत में विजयश्री भी उन्हें अवश्य मिलती है । ऐसे व्यक्ति भाग्य पर नहीं अपितु अपने कर्म में आस्था रखते हैं । वे अपने मनोबल तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति से असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं ।
मन के द्वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है । मन के द्वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं । मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों ।
अनिच्छा या दबाववश किए गए कार्य में मनुष्य कभी भी अपनी पूर्ण क्षमताओं का प्रयोग नहीं कर पाता है । अत: मन के योग से ही कार्य की सिद्धि होती है मन के योग के अभाव में अस्थिरता उत्पन्न होती है । मनुष्य यदि दृढ़ निश्चयी है तथा उसका आत्मविश्वास प्रबल है तब वह सफलता के लिए पूर्ण मनोयोग से संघर्ष करता है ।
सफलता प्राप्ति में यदि विलंब भी होता है अथवा उसे अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है तब भी वह क्षण भर के लिए भी अपना धैर्य नहीं खोता है । एक-दो चरणों में यदि उसे आशातीत सफलता नहीं मिलती है तब भी वह संघर्ष करता रहता है और अंतत: विजयश्री उसे ही प्राप्त होती है ।
इसलिए सच ही कहा गया है कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ । हमारी पराजय का सीधा अर्थ है कि विजय के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं किया गया । परिस्थितियाँ मनुष्य को तभी हारने पर विवश कर सकती हैं जब वह स्वयं घुटने टेक दे ।
हालाकि कई बार परिस्थितियाँ अथवा जमीनी सचाइयों इतनी भयावह होती हैं कि व्यक्ति चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता परंतु दृढ़निश्चयी बनकर वह धीरे-धीरे ही सही परिस्थितियों को अपने वश में कर सकता है । अत: संकल्पित व्यक्ति समय की अनुकूलता का भी ध्यान रखता है ।
कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे जीत के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं और अंत में विजयश्री भी उन्हें अवश्य मिलती है । ऐसे व्यक्ति भाग्य पर नहीं अपितु अपने कर्म में आस्था रखते हैं । वे अपने मनोबल तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति से असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं ।
मन के द्वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है । मन के द्वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं । मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों ।
अनिच्छा या दबाववश किए गए कार्य में मनुष्य कभी भी अपनी पूर्ण क्षमताओं का प्रयोग नहीं कर पाता है । अत: मन के योग से ही कार्य की सिद्धि होती है मन के योग के अभाव में अस्थिरता उत्पन्न होती है । मनुष्य यदि दृढ़ निश्चयी है तथा उसका आत्मविश्वास प्रबल है तब वह सफलता के लिए पूर्ण मनोयोग से संघर्ष करता है ।
सफलता प्राप्ति में यदि विलंब भी होता है अथवा उसे अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है तब भी वह क्षण भर के लिए भी अपना धैर्य नहीं खोता है । एक-दो चरणों में यदि उसे आशातीत सफलता नहीं मिलती है तब भी वह संघर्ष करता रहता है और अंतत: विजयश्री उसे ही प्राप्त होती है ।
इसलिए सच ही कहा गया है कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ । हमारी पराजय का सीधा अर्थ है कि विजय के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं किया गया । परिस्थितियाँ मनुष्य को तभी हारने पर विवश कर सकती हैं जब वह स्वयं घुटने टेक दे ।
हालाकि कई बार परिस्थितियाँ अथवा जमीनी सचाइयों इतनी भयावह होती हैं कि व्यक्ति चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता परंतु दृढ़निश्चयी बनकर वह धीरे-धीरे ही सही परिस्थितियों को अपने वश में कर सकता है । अत: संकल्पित व्यक्ति समय की अनुकूलता का भी ध्यान रखता है ।
hope it works help you
हारे नहीं इंसान, है संदेश जीवन का यही
कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे जीत के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं और अंत में विजयश्री भी उन्हें अवश्य मिलती है । ऐसे व्यक्ति भाग्य पर नहीं अपितु अपने कर्म में आस्था रखते हैं । वे अपने मनोबल तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति से असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं ।
मन के द्वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है । मन के द्वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं । मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों ।
अनिच्छा या दबाववश किए गए कार्य में मनुष्य कभी भी अपनी पूर्ण क्षमताओं का प्रयोग नहीं कर पाता है । अत: मन के योग से ही कार्य की सिद्धि होती है मन के योग के अभाव में अस्थिरता उत्पन्न होती है । मनुष्य यदि दृढ़ निश्चयी है तथा उसका आत्मविश्वास प्रबल है तब वह सफलता के लिए पूर्ण मनोयोग से संघर्ष करता है ।
सफलता प्राप्ति में यदि विलंब भी होता है अथवा उसे अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है तब भी वह क्षण भर के लिए भी अपना धैर्य नहीं खोता है । एक-दो चरणों में यदि उसे आशातीत सफलता नहीं मिलती है तब भी वह संघर्ष करता रहता है और अंतत: विजयश्री उसे ही प्राप्त होती है ।
इसलिए सच ही कहा गया है कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ । हमारी पराजय का सीधा अर्थ है कि विजय के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं किया गया । परिस्थितियाँ मनुष्य को तभी हारने पर विवश कर सकती हैं जब वह स्वयं घुटने टेक दे ।
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कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे जीत के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं और अंत में विजयश्री भी उन्हें अवश्य मिलती है । ऐसे व्यक्ति भाग्य पर नहीं अपितु अपने कर्म में आस्था रखते हैं । वे अपने मनोबल तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति से असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं ।
मन के द्वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है । मन के द्वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं । मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों ।
अनिच्छा या दबाववश किए गए कार्य में मनुष्य कभी भी अपनी पूर्ण क्षमताओं का प्रयोग नहीं कर पाता है । अत: मन के योग से ही कार्य की सिद्धि होती है मन के योग के अभाव में अस्थिरता उत्पन्न होती है । मनुष्य यदि दृढ़ निश्चयी है तथा उसका आत्मविश्वास प्रबल है तब वह सफलता के लिए पूर्ण मनोयोग से संघर्ष करता है ।
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इसलिए सच ही कहा गया है कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ । हमारी पराजय का सीधा अर्थ है कि विजय के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं किया गया । परिस्थितियाँ मनुष्य को तभी हारने पर विवश कर सकती हैं जब वह स्वयं घुटने टेक दे ।
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Sampada1021:
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