i need kabir ki sakhiyan...bhavarth in beautiful and heart taking ,brief ,descriptive class 10 cbse
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कबीर की सखिया
ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ।अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ।।
भावार्थ - कबीर कहते हैं की हमें ऐसी बातें करनी चाहिए जिसमें हमारा अहं ना झलकता हो। इससे हमारा मन शांत रहेगा तथा सुनने वाले को भी सुख और शान्ति प्राप्त होगी।
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढै वन माँहि।
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढै वन माँहि। ऐसैं घटि-घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि।।
भावार्थ - यहाँ कबीर ईश्वर की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि कस्तूरी हिरन की नाभि में होती है लेकिन इससे अनजान हिरन उसके सुगंध के कारण उसे पूरे जंगल में ढूंढ़ता फिरता है ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं परन्तु मनुष्य इसे वहाँ नही देख पाता। वह ईश्वर को मंदिर-मस्जिद और तीर्थ स्थानों में ढूंढ़ता रहता है।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।।
भावार्थ - यहाँ कबीर कह रहे हैं की जब तक मनुष्य के मन में अहंकार होता है तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नही होती। जब उसके अंदर का अंहकार मिट जाता है तब ईश्वर की प्राप्ति होती है। ठीक उसी प्रकार जैसे दीपक के जलने पर उसके प्रकाश से आँधियारा मिट जाता है। यहाँ अहं का प्रयोग अन्धकार के लिए तथा दीपक का प्रयोग ईश्वर के लिए किया गया है।
सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै।
सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै।दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।।
भावार्थ - कबीरदास के अनुसार ये सारी दुनिया सुखी है क्योंकि ये केवल खाने और सोने का काम करता है। इसे किसी भी प्रकार की चिंता नहीं है। उनके अनुसार सबसे दुखी व्यक्ति वो हैं जो प्रभु के वियोग में जागते रहते हैं। उन्हें कहीं भी चैन नही मिलता, वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में रहते हैं।
बिरह भुवंगम तन बसै, मन्त्र ना लागै कोइ।
बिरह भुवंगम तन बसै, मन्त्र ना लागै कोइ।राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ।।
भावार्थ - जब किसी मनुष्य के शरीर के अंदर अपने प्रिय से बिछड़ने का साँप बसता है तो उसपर कोई मन्त्र या दवा का असर नहीं होता ठीक उसी प्रकार राम यानी ईश्वर के वियोग में मनुष्य भी जीवित नही रहता। अगर जीवित रह भी जाता है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है।
निंदक नेडा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
निंदक नेडा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।बिन साबण पाँणी बिना, निरमल करै सुभाइ।।
भावार्थ - संत कबीर कहते हैं की निंदा करने वाले व्यक्ति को सदा अपने पास रखना चाहिए, हो सके तो उसके लिए अपने पास रखने का प्रबंध करना चाहिए ताकि हमें उसके द्वारा अपनी त्रुटियों को सुन सकें और उसे दूर कर सकें। इससे हमारा स्वभाव साबुन और पानी की मदद के बिना निर्मल हो जाएगा।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया ना कोइ।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया ना कोइ।ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई।।
भावार्थ - कबीर कहते हैं की इस संसार में मोटी-मोटी पुस्तकें पढ़-पढ़ कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी पंडित ना बन पाया। यदि किसी मनुष्य ने ईश्वर-भक्ति का एक अक्षर भी पढ़ लिया होता तो वह पंडित बन जाता यानी ईश्वर ही एकमात्र सत्य है, इसे जाननेवाला ही वास्तविक ज्ञानी है।
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराडा हाथि।
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराडा हाथि। अब घर जालौं तास का, जे चले हमारे साथि।।
भावार्थ - कबीर कहते हैं की उन्होंने अपने हाथों से अपना घर जला लिया है यानी उन्होंने मोह-माया रूपी घर को जलाकर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल है यानी ज्ञान है। अब वो उसका घर जालयेंगे जो उनके साथ जाना चाहता है यानी उसे भी मोह-माया के बंधन से आजाद होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।
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