Hindi, asked by 9098508016, 29 days ago

(i) "पीपर पात सरिस मन डोला"।​

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Answered by nikhilrai27
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Answer:

यह रामचरितमानस नें स्वामी तुलसीदास का लिखा हुआ है।

इसका अर्थ एक संदर्भ में है कि राजा दशरथ कैकेयी को वचन दे चुके हैं, जिसके अनुसार श्री राम को वनवास जाना है।

राजा दशरथ विचार कर रहे हैं, पर कुछ बोलते नहीं हैं। उनका मन पीपल के पत्ते की तरह; जो ज़रा सी हवा में भी हिलने लगता है; की भांति डोल रहा है कि कैसे वो राम जी को यह सब बोल पाएँगे।

रघुनाथ जी को यह बात पता चल चुका है।

श्री रघुनाथजी ने पिता को, अपनी माता कैकेयी के प्रेमवश में जानकर यह अनुमान लगाया कि माता फिर कुछ कहेगी तो पिताजी को दुःख होगा।

अब आते हैं, इस पंक्ति पर :-

"पीपर पात सरिस मन डोला"

पीपर का मतलब = पीपल होता है।

पात = पत्ता

सरिस = समान

हिंदी के कुछ खास दोहे या पंक्तियों को लिखते समय उसमें अलंकार का प्रयोग किया जाता है।

"पीपर पात सरिस मन डोला" दोहे की एक पंक्ति मात्र है।

अलंकार कई तरह के होते हैं।

ऊपर की पंक्तियों में उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है।

जहाँ 'उपमेय' मुख्य शब्द की तुलना 'उपमान' शब्द से की जाती है और तुलनात्मक शब्द को उपमा अलंकार कहा जाता है।

ऊपर दिए गए उदाहरण में मन को पीपल के पत्ते कि तरह डोलता हुआ बताया जा रहा है।

इस उदाहरण में :-

मन – उपमेय है,

पीपर पात– उपमान है,

डोला – साधारण शब्द है,

सरिस अर्थात के सामान – वाचक शब्द है।

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