I दीरघ -दाघ निदाघ' का arth क्या है ?
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इस पंक्ति का आशय है कि संसार (जगत) को प्रभु ने ग्रीष्म ऋतु की प्रचंड गरमी से उसी प्रकार तपा दिया है, जिस प्रकार तपस्वी तपोवन को अपने तप के द्वारा शुद्ध एवं पवित्र करता है।
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