I want a paragraph on नैतिक पतन: देश का पतन
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नैतिकता नर का ही भूषण नहीं है, अपितु वह समाज और राष्ट्र का ऐसा दीव्य गुण है, जिससे महान से महान शक्ति का संचार होता है इससे राष्ट्र की संस्कृति और सभ्यता महानता के शिखर पर आसीन होती है। अन्य देशों की तुलना में वह अधिक मूल्यवान और श्रेष्ठतर सिद्ध होता है। सभी इससे प्रभावित और आकर्षित होते हैं। आज भौतिकता के युग में नैतिकता को जो हास हो चुका है, उसे देखते हुए संसार के कम ही राष्ट्र और समाज में नैतिकता का दम-खम रह गया है। परस्पर स्वार्थपरता, लोलुपता और अपना-पराया का कटु वातावरण आज जो फैल रहा है, उसके मूल में नैतिक गुणों का न होना ही है। आज मनुष्य मनुष्यता को भूलकर पशुता के ही सब कुछ श्रेय और प्रेम इसलिए मान रहा है कि नैतिकता का परिवेश उसे कहीं नहीं दिखाई देता है। आश्चर्य की बात यह है कि भारत जो नैतिकता के गुणों से युक्त राष्ट्र रहा है और जो नैतिकता के इस सिद्धान्त का पालन करते नहीं अघाते थे।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग भवेत्।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग भवेत्।।
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