i want a poem on babasaheb ambedkar any language
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संवारा है विधि ने वह छण इस तरह से,
दिया जब जगत को है उपहार ऐसा ।
सुहाना महीना बसंती पवन थी,
लिए जन्म 'बाबा' हुआ हर्ष ऐसा ।
पिता राम जी करते सेना में सेवा,
मदिरा मांस जिसने कभी नहीं लेवा,
माता जी भीमाबाई धर्म की विभूति थी,
विनय-सद्भावना की साक्षात मूर्ति थीं,
उनके प्रताप का प्रकाश प्राप्त कर के,
हुआ सुत विलक्षण कोई जग न ऐसा ।।
शिक्षा संगठन के थे वे पुजारी,
अधिकार हेतु किए संघर्ष भारी,
मानव मेँ रक्त एक, एक भाँति आये,
स्वारथ बस होके जाति पाति हैं बनायें,
युगो की यह पीड़ा रमी थी जो रग-रग,
गहे अस्त्र जब वे गया दर्द ऐसा ।।
देश के विधान हेतु संविधान उनका,
हित है निहित जिसमें रहा जन-जन का.
एकता अखंडता स्वदेश प्रेम भाये,
धर्म वे स्वदेशी सदा अपनाये,
छुवा-छूत मंतर छू करके भगाये
सहे दीन दुखियों के हित क्लेश ऐसा ।।
दिये उपदेश उसे सदा अपनायें,
किसी के समक्ष कर नहीं फैलायें,
मार्ग शांति का पुनीत कभी नहीं भूलें,
श्रम अरु उमंग भाव गहि गगन छू लें,
सदा दीप होगा ज्वलित जग में जगमग,
लगें सब सगे 'राज' सबके सब ऐसा ।।
- राज नारायण तिवारी
Duniya ko jagane wale bhim the!!
Hamne to sirf itihas padha hai yaro !!!
Itihas ko banane wale mere bhim the!!!!