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harmonium in hindi language plz reply fast
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Tabla
हिन्दुस्तानी संगीत में प्रयोग होने वाला एक तालवाद्य है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई देशों में बहुत प्रचलित है।[1] यह लकड़ी के दो ऊर्ध्वमुखी, बेलनाकार, चमड़ा मढ़े मुँह वाले हिस्सों के रूप में होता है, जिन्हें रख कर बजाये जाने की परंपरा के अनुसार "दायाँ" और "बायाँ" कहते हैं। यह तालवाद्य हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में काफी महत्वपूर्ण है और अठारहवीं सदी के बाद से इसका प्रयोग शाष्त्रीय एवं उप शास्त्रीय गायन-वादन में लगभग अनिवार्य रूप से हो रहा है। इसके अतिरिक्त सुगम संगीत और हिंदी सिनेमा में भी इसका प्रयोग प्रमुखता से हुआ है। यह बाजा भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, और श्री लंका में प्रचलित है।पहले यह गायन-वादन-नृत्य इत्यादि में ताल देने के लिए सहयोगी वाद्य के रूप में ही बजाय जाता था, परन्तु बाद में कई तबला वादकों ने इसे एकल वादन का माध्यम बनाया और काफी प्रसिद्धि भी अर्जित की
Dapli
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बांसुरी काष्ठ वाद्य परिवार का एक संगीत उपकरण है। नरकट वाले काष्ठ वाद्य उपकरणों के विपरीत, बांसुरी एक एरोफोन या बिना नरकट वाला वायु उपकरण है जो एक छिद्र के पार हवा के प्रवाह से ध्वनि उत्पन्न करता है। होर्नबोस्टल-सैश्स के उपकरण वर्गीकरण के अनुसार, बांसुरी को तीव्र-आघात एरोफोन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
बांसुरीवादक को एक फ्लूट प्लेयर, एक फ्लाउटिस्ट, एक फ्लूटिस्ट, या कभी कभी एक फ्लूटर के रूप में संदर्भित किया जाता है।
बांसुरी पूर्वकालीन ज्ञात संगीत उपकरणों में से एक है। करीब 40,000 से 35,000 साल पहले की तिथि की कई बांसुरियां जर्मनी के स्वाबियन अल्ब क्षेत्र में पाई गई हैं। यह बांसुरियां दर्शाती हैं कि यूरोप में एक विकसित संगीत परंपरा आधुनिक मानव की उपस्थिति के प्रारंभिक काल से ही अस्तित्व में है।[
खोजी गई सबसे पुरानी बांसुरी गुफा में रहने वाले एक तरुण भालू की जाँघ की हड्डी का एक टुकड़ा हो सकती है, जिसमें दो से चार छेद हो सकते हैं, यह स्लोवेनिया के डिव्जे बेब में पाई गई है और करीब 43,000 साल पुरानी है। हालांकि, इस तथ्य की प्रामाणिकता अक्सर विवादित रहती है।[2][3] 2008 में जर्मनी के उल्म के पास होहल फेल्स गुहा में एक और कम से कम 35,000 साल पुरानी बांसुरी पाई गई।[4] इस पाँच छेद वाली बांसुरी में एक वी-आकार का मुखपत्र है और यह एक गिद्ध के पंख की हड्डी से बनी है। खोज में शामिल शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्षों को अगस्त 2009 में ''नेचर'' नामक जर्नल में आधिकारिक तौर पर प्रकाशित किया।[5] यह खोज इतिहास में किसी भी वाद्य यंत्र की सबसे पुरानी मान्य खोज भी है।[6] बांसुरी, पाए गए कई यंत्रों में से एक है, यह होहल फेल्स के शुक्र के सामने और प्राचीनतम ज्ञात मानव नक्काशी से थोड़ी सी दूरी पर होहल फेल्स की गुफा में पाई गई थी।[7] खोज की घोषणा पर, वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि "जब आधुनिक मानव ने यूरोप को उपिनवेशित शत किया था, खोज उस समय की एक सुतस्थापित संगीत परंपरा की उपस्थिति को प्रदर्शित करती है".[8] वैज्ञानिकों ने यह सुझाव भी दिया है कि, बांसुरी की खोज निएंदरथेल्स और प्रारंभिक आधुनिक मानव "के बीच संभवतः व्यवहारिक और सृजनात्मक खाड़ी" को समझाने में सहायता भी कर सकती है।[6]
मेमथ के दांत से निर्मित, 18.7 सेमी लम्बी, तीन छिद्रों वाली बांसुरी (दक्षिणी जर्मन स्वाबियन अल्ब में उल्म के निकट स्थिति Geißenklösterle गुफा से प्राप्त हुई है और इसकी तिथि 30000 से 37,000 वर्ष पूर्व निश्चित की गयी है)[9] 2004 में खोजी गयी थी और दो अन्य हंसहड्डियों से निर्मित बांसुरियां जो एक दशक पहले खुदाई में प्राप्त हुई थी (जर्मनी की इसी गुफा से, जिनकी तिथि लगभग 36,000 साल पूर्व प्राप्त होती है) प्राचीनतम ज्ञात वाद्ययंत्रों में से हैं।
पांच से आठ छिद्रों वाली नौ हज़ार वर्ष पुरानी गुडी(शाबि्दक अर्थ "हड्डी" बांसुरी), जिनकी निर्माण लाल कलगी वाले क्रेन के पंख की हड्डियों से किया गया है, को मध्य चीन के एक प्रान्त हेन्नन मँ स्थित जिअहु[10] के एक मकबरे से खनित किया गया है।[11]
हिन्दुस्तानी संगीत में प्रयोग होने वाला एक तालवाद्य है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई देशों में बहुत प्रचलित है।[1] यह लकड़ी के दो ऊर्ध्वमुखी, बेलनाकार, चमड़ा मढ़े मुँह वाले हिस्सों के रूप में होता है, जिन्हें रख कर बजाये जाने की परंपरा के अनुसार "दायाँ" और "बायाँ" कहते हैं। यह तालवाद्य हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में काफी महत्वपूर्ण है और अठारहवीं सदी के बाद से इसका प्रयोग शाष्त्रीय एवं उप शास्त्रीय गायन-वादन में लगभग अनिवार्य रूप से हो रहा है। इसके अतिरिक्त सुगम संगीत और हिंदी सिनेमा में भी इसका प्रयोग प्रमुखता से हुआ है। यह बाजा भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, और श्री लंका में प्रचलित है।पहले यह गायन-वादन-नृत्य इत्यादि में ताल देने के लिए सहयोगी वाद्य के रूप में ही बजाय जाता था, परन्तु बाद में कई तबला वादकों ने इसे एकल वादन का माध्यम बनाया और काफी प्रसिद्धि भी अर्जित की
Dapli
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बांसुरी काष्ठ वाद्य परिवार का एक संगीत उपकरण है। नरकट वाले काष्ठ वाद्य उपकरणों के विपरीत, बांसुरी एक एरोफोन या बिना नरकट वाला वायु उपकरण है जो एक छिद्र के पार हवा के प्रवाह से ध्वनि उत्पन्न करता है। होर्नबोस्टल-सैश्स के उपकरण वर्गीकरण के अनुसार, बांसुरी को तीव्र-आघात एरोफोन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
बांसुरीवादक को एक फ्लूट प्लेयर, एक फ्लाउटिस्ट, एक फ्लूटिस्ट, या कभी कभी एक फ्लूटर के रूप में संदर्भित किया जाता है।
बांसुरी पूर्वकालीन ज्ञात संगीत उपकरणों में से एक है। करीब 40,000 से 35,000 साल पहले की तिथि की कई बांसुरियां जर्मनी के स्वाबियन अल्ब क्षेत्र में पाई गई हैं। यह बांसुरियां दर्शाती हैं कि यूरोप में एक विकसित संगीत परंपरा आधुनिक मानव की उपस्थिति के प्रारंभिक काल से ही अस्तित्व में है।[
खोजी गई सबसे पुरानी बांसुरी गुफा में रहने वाले एक तरुण भालू की जाँघ की हड्डी का एक टुकड़ा हो सकती है, जिसमें दो से चार छेद हो सकते हैं, यह स्लोवेनिया के डिव्जे बेब में पाई गई है और करीब 43,000 साल पुरानी है। हालांकि, इस तथ्य की प्रामाणिकता अक्सर विवादित रहती है।[2][3] 2008 में जर्मनी के उल्म के पास होहल फेल्स गुहा में एक और कम से कम 35,000 साल पुरानी बांसुरी पाई गई।[4] इस पाँच छेद वाली बांसुरी में एक वी-आकार का मुखपत्र है और यह एक गिद्ध के पंख की हड्डी से बनी है। खोज में शामिल शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्षों को अगस्त 2009 में ''नेचर'' नामक जर्नल में आधिकारिक तौर पर प्रकाशित किया।[5] यह खोज इतिहास में किसी भी वाद्य यंत्र की सबसे पुरानी मान्य खोज भी है।[6] बांसुरी, पाए गए कई यंत्रों में से एक है, यह होहल फेल्स के शुक्र के सामने और प्राचीनतम ज्ञात मानव नक्काशी से थोड़ी सी दूरी पर होहल फेल्स की गुफा में पाई गई थी।[7] खोज की घोषणा पर, वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि "जब आधुनिक मानव ने यूरोप को उपिनवेशित शत किया था, खोज उस समय की एक सुतस्थापित संगीत परंपरा की उपस्थिति को प्रदर्शित करती है".[8] वैज्ञानिकों ने यह सुझाव भी दिया है कि, बांसुरी की खोज निएंदरथेल्स और प्रारंभिक आधुनिक मानव "के बीच संभवतः व्यवहारिक और सृजनात्मक खाड़ी" को समझाने में सहायता भी कर सकती है।[6]
मेमथ के दांत से निर्मित, 18.7 सेमी लम्बी, तीन छिद्रों वाली बांसुरी (दक्षिणी जर्मन स्वाबियन अल्ब में उल्म के निकट स्थिति Geißenklösterle गुफा से प्राप्त हुई है और इसकी तिथि 30000 से 37,000 वर्ष पूर्व निश्चित की गयी है)[9] 2004 में खोजी गयी थी और दो अन्य हंसहड्डियों से निर्मित बांसुरियां जो एक दशक पहले खुदाई में प्राप्त हुई थी (जर्मनी की इसी गुफा से, जिनकी तिथि लगभग 36,000 साल पूर्व प्राप्त होती है) प्राचीनतम ज्ञात वाद्ययंत्रों में से हैं।
पांच से आठ छिद्रों वाली नौ हज़ार वर्ष पुरानी गुडी(शाबि्दक अर्थ "हड्डी" बांसुरी), जिनकी निर्माण लाल कलगी वाले क्रेन के पंख की हड्डियों से किया गया है, को मध्य चीन के एक प्रान्त हेन्नन मँ स्थित जिअहु[10] के एक मकबरे से खनित किया गया है।[11]
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