Ibn battuta essay I'm hindi
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एक ऐसे यात्री जिसने उस दौर में 117,000 की.मि. की यात्रा की जिस दौर में यातायात के साधन बहुत काम थे
इब्न-बतूता एक महान और साहसी यात्री !
आज हमारी दुनिया में यातायात इतने साधन मूजूद हैं जिनसे हम मिनट में एक जगह से दूसरी जगह आसानी से पहुच सकते हैं ! हमने बहुत विकास कर लिया हैं और करते जा रहे हैं ! पर यहाँ तक हम खुद चल कर नहीं पहुचे बल्कि यहाँ तक पहुचाने में बहुत से लोगो का महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं ! विश्व में ऐसे बहुत से यात्री गुज़रे जिन्होंने हमें बहुत अहम जानकारिय दी जिसने हमें विकास करने में सहायता की ! ऐसे ही महान और साहसी यात्रियों में नाम आता है इब्न-बतूता का जिन्होंने ने उस समय लंबी लंबी यत्र्ये की जब यातायात के साधन बहुत सिमित थे ! वो अफ्रीका में पैदा हुए पर उन्होंने न सिर्फ अफ्रीका की यात्रा की बल्कि Middle East, South Asia and China तक की यात्राएं की ! उनकी ये यत्र्ये आगे आने वाले यात्रियों के लिए भी प्रेणा श्रोत बानी रही !
शुरूआती जीवन !
इब्न-बतूता का पूरा नाम Abu Abdullah Muhammad Ibn Battuta था ! उनका जन्म 1304 Tangier ,Moroccan में हुआ था ! इसके पूर्वजों का व्यवसाय काजियों का था। इब्न बत्तूता बचपन से ही धार्मिक रुझान के थे । उन्हें प्रसिद्ध शहर और मुसलमानों पवित्र मक्के की यात्रा (हज) करने की बड़ी ख़ाहिश थी। अपनी इस ख़ाहिश को पूरा करने के लिए उन्होंने पवित्र शहर मक्का की यात्रा का इरादा कर लिया उस समय वह केवल 21 बरस के थे ! उस समय उन्होंने लिखा " I left Tangiers, my birth place on Thursday 2 Rajab, 725 (H) with the intention of going on pilgrimage to Mecca. I was alone, without companions, not in a caravan, but I was stirred by a powerful urge to reach my goal (Mecca)… I left my friends and my home, just as a bird leaves its parental nest. My father and mother were still alive, and with great pain, I parted with them. For me as for them, it was cause of insufferable illness. I was then only twenty two.
जब वह मक्का के लिए निकले तब उन्होंने कभी न सोचा था कि उसे इतनी लंबी देश देशांतरों की यात्रा करने का अवसर मिलेगा । मक्के आदि तीर्थस्थानों की यात्रा करना प्रत्येक मुसलमान का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। इसी से सैकड़ों मुसलमान विभिन्न देशों से मक्का आते रहते थे । उस समय इन यात्रो को आसान बनाने के लिए बहुत से मुस्लिम संगठन और संस्थाए काम करती थी इनका काम ही मक्का आने वाले यात्रियों के सुविधा के लिए साधन उपलप्ध करना था इससे मक्का आने वाले यात्रियों की यात्रा बड़ा रोचक तथा आनंददायक बन जाती थी। इब्न बत्तूता ने इन संस्थाओं की बार-बार प्रशंसा की है। वह उनके इस काम से बहुत प्रभवित थे और उनके दिल में इनके पार्टी बड़ा सेन्ह था । इनमें सब बड़े वह संगठन थे जिसके द्वारा बड़े से बड़े यात्री दलों की हर प्रकार की सुविधा के लिए हर स्थान पर आगे से ही पूरी-पूरी व्यवस्था कर दी जाती थी एवं मार्ग में उनकी सुरक्षा का भी प्रबंध किया जाता था। प्रत्येक गाँव तथा नगर में ख़ानकाहें (मठ) तथा सराएँ उनके ठहरने, खाने पीने आदि के लिए होती थीं।
यात्राओ का शोक कैसे पैदा हुआ ?
इब्न बत्तूता दमिश्क और फिलिस्तीन होता एक कारवाँ के साथ मक्का पहुँचा। इस यात्रा के दिनों में दो मोलवियों से इब्न बत्तूता की मुलाकात हुई ये मौलवी पूवी देशो की यात्रा कर चुके थे उन्होंने उस वह की खूबसूरती के बारे में बताया और वहाँ के खानपान और रहन सहन की चर्चा की जिससे इब्न बत्तूता के मन भी उन देशो को देखने की इच्छा हुई ! इब्न बत्तूता ने इसी समय मन ही मन ये इरादा किया की वो इन देशो की यात्रा करेगा ।
# यात्राएं
इब्न बत्तूता ने अपनी यात्रा Middle ईस्ट से शुरू की लाल सागर पर करते हुए वो मक्का पहुचे ! वह से वो अरब का बीहड़ रेगिस्तान पर करते हुए इराक और ईरान गए ! साल 1330 में वो लाल सागर पर करते हुए वापस तंज़ानिया आ गए ! 1332 में उन्होंने ने भारत जाने का इरादा किया ! भारत पहुचने पर दिल्ली के सुल्तान ने उनका ज़ोरदार स्वागत किया ! यहाँ न्यायधीश (काज़ी) का काम सौपा गया! इब्न बत्तूता भारत में 8 साल रहे फिर वो चीन चले गए ! इब्न बत्तूता ने अपना सफर जारी रखा और साल 1352 में वो सहारा रेगिस्तान पर करते हुए अफ़्रीकी देश माली जा पहुचे ! साल 1355 में वो अपने घर Tangier वापस आ गए !
इब्न बत्तूता अलग अलग देशो के रहन सहन से बहुत प्रभवित थे ! उस समय में तुर्को और मंगोलो के राज्य में महिलाओ की स्थिति में बहुत अंतर जीका ज़िक्र इब्न बत्तूता ने अपने यात्रा में अनुभव किया था वही मालदीव्स के रहने वालो के पहनावों में और sub-Saharan regions के पहनावों में भी बड़ा अंतर देखने को मिलता था !
# मिर्त्यु
अपनी यात्रायों का दौर ख़त्म करने के बाद इब्न बत्तूता 1355 वो अपने घर आ गये . मोरक्को में उन्हें judge (काज़ी ) का काम सौपा गया ! साल 1368 में उनकी मौत हो गई ! उनकी यत्र्ये हमें आज भी १४वी सदी की अहम् जानकारिय देती हैं !