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meaning of words –
जलन → strain
श्रम → labour
ठप → stop
जरूरतें → needs
चाहतें → wants/desires
सीमा → limits
दिनचर्या → daily routine
टहलना → to walk
शौच → toilet
स्नान करना → to bath
व्यर्थ करना → to waste
निजी गाड़ियों → personal vehicle
सार्वजनिक परिवाहन → public transport
प्रदूषण → pollution
AC → Air-conditioner
पर्यावरण → environment
वन्यजीव अभ्यारण्य → wildlife sanctuaries
सत्य → truth
जिम्मेदार → responsible
मनुष्य: दिन प्रतिदिन गर्मी का मौसम बिगड़ता जा रहा है। गर्मी बढ़ रही है। पसीने से लोग भीगने लगे हैं, सबकी आंखें में एक अजीब सी जलन है। विद्यार्थियों की पढ़ाई हो या बड़ों का काम, पुलिस की ड्यूटी हो या श्रम की मेहनत, सब कुछ जैसे ठप हो गया है। ये क्या हो रहा है, मेरे प्रिय वृक्ष ?
वृक्ष: तुम्हारी जरूरतों, या यूं कह लो चाहतों कि वजह से गर्मी की सीमा बढ़ती जा रही है।
मनुष्य: ये क्या कह रहे हो तुम, हमारी जरूरतें (चाहतें), किस जरूरत या चाहत की तुम बात कर रहे हो ?
वृक्ष: यह तुम मुझसे नहीं खुद से भी पूछ सकते हो।
मनुष्य: कैसे, और क्या पुछू मैं खुद से ?
वृक्ष: तुम अपनी दिनचर्या मुझे बताओ।
मनुष्य: मैं सुबह उठ कर पानी पीता हूं फिर थोड़ी देर टहलता हूं, उसके बाद ब्रश, शौच और स्नान करता कपड़े पहनता, खाना खाता, फिर काम पर जाता, संध्या को वापस आकर कुछ देर आराम करता और फिर रात्रि भोजन करके सो जाता।
वृक्ष: बहुत अच्छे, लेकिन तुमने ये तो बताया ही नहीं कि तुम कितने पानी से स्नान करते हो, काम पर कैसे जाते हो, इत्यादि।
मनुष्य: (थोड़ा सोचा और बोला) हां, शायद मैं स्नान करते समय अधिक पानी का इस्तेमाल करता हूं, और काम में अपनी निजी कार से जाता हूं। परंतु इसमें विचित्र क्या है।
वृक्ष: जिस पानी का तुम मनुष्य व्यर्थ करते हो, वह पानी हम दोनो ( मनुष्य एवं पेड़ पौधों) के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तुम मनुष्य कहीं भी जाने के लिए अपनी निजी गाड़ियों का इस्तेमाल सार्वजनिक परिवाहन की तुलना में ज्यादा करते हो, जिस वजह से ट्रैफिक बढ़ता है, और अधिक मात्रा में प्रदूषण फैलता है। इस प्रदूषण की वजह से गर्मी बढ़ती है।
मनुष्य AC का इस्तेमाल करता है, जिस वजह से कमरे में या गाड़ी में गर्मी घटती है और थंड बढ़ती है, परंतु इससे पर्यावरण में गर्मी भैलती है। मनुष्य पेड़ काटता है, परंतु पेड़ लगता नहीं, जानवर मारता, बेचता और खरदता है और फिर उनके लिए वन्यजीव अभ्यारण्य बनवाता है।
मनुष्य: तुम्हारी बात बिल्कुल सत्य है। बढ़ती गर्मी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तो हम मनुष्य ही है।
SAVE TREES, SAVE LIVES...
THANKYOU!!!
जलन → strain
श्रम → labour
ठप → stop
जरूरतें → needs
चाहतें → wants/desires
सीमा → limits
दिनचर्या → daily routine
टहलना → to walk
शौच → toilet
स्नान करना → to bath
व्यर्थ करना → to waste
निजी गाड़ियों → personal vehicle
सार्वजनिक परिवाहन → public transport
प्रदूषण → pollution
AC → Air-conditioner
पर्यावरण → environment
वन्यजीव अभ्यारण्य → wildlife sanctuaries
सत्य → truth
जिम्मेदार → responsible
मनुष्य: दिन प्रतिदिन गर्मी का मौसम बिगड़ता जा रहा है। गर्मी बढ़ रही है। पसीने से लोग भीगने लगे हैं, सबकी आंखें में एक अजीब सी जलन है। विद्यार्थियों की पढ़ाई हो या बड़ों का काम, पुलिस की ड्यूटी हो या श्रम की मेहनत, सब कुछ जैसे ठप हो गया है। ये क्या हो रहा है, मेरे प्रिय वृक्ष ?
वृक्ष: तुम्हारी जरूरतों, या यूं कह लो चाहतों कि वजह से गर्मी की सीमा बढ़ती जा रही है।
मनुष्य: ये क्या कह रहे हो तुम, हमारी जरूरतें (चाहतें), किस जरूरत या चाहत की तुम बात कर रहे हो ?
वृक्ष: यह तुम मुझसे नहीं खुद से भी पूछ सकते हो।
मनुष्य: कैसे, और क्या पुछू मैं खुद से ?
वृक्ष: तुम अपनी दिनचर्या मुझे बताओ।
मनुष्य: मैं सुबह उठ कर पानी पीता हूं फिर थोड़ी देर टहलता हूं, उसके बाद ब्रश, शौच और स्नान करता कपड़े पहनता, खाना खाता, फिर काम पर जाता, संध्या को वापस आकर कुछ देर आराम करता और फिर रात्रि भोजन करके सो जाता।
वृक्ष: बहुत अच्छे, लेकिन तुमने ये तो बताया ही नहीं कि तुम कितने पानी से स्नान करते हो, काम पर कैसे जाते हो, इत्यादि।
मनुष्य: (थोड़ा सोचा और बोला) हां, शायद मैं स्नान करते समय अधिक पानी का इस्तेमाल करता हूं, और काम में अपनी निजी कार से जाता हूं। परंतु इसमें विचित्र क्या है।
वृक्ष: जिस पानी का तुम मनुष्य व्यर्थ करते हो, वह पानी हम दोनो ( मनुष्य एवं पेड़ पौधों) के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तुम मनुष्य कहीं भी जाने के लिए अपनी निजी गाड़ियों का इस्तेमाल सार्वजनिक परिवाहन की तुलना में ज्यादा करते हो, जिस वजह से ट्रैफिक बढ़ता है, और अधिक मात्रा में प्रदूषण फैलता है। इस प्रदूषण की वजह से गर्मी बढ़ती है।
मनुष्य AC का इस्तेमाल करता है, जिस वजह से कमरे में या गाड़ी में गर्मी घटती है और थंड बढ़ती है, परंतु इससे पर्यावरण में गर्मी भैलती है। मनुष्य पेड़ काटता है, परंतु पेड़ लगता नहीं, जानवर मारता, बेचता और खरदता है और फिर उनके लिए वन्यजीव अभ्यारण्य बनवाता है।
मनुष्य: तुम्हारी बात बिल्कुल सत्य है। बढ़ती गर्मी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तो हम मनुष्य ही है।
SAVE TREES, SAVE LIVES...
THANKYOU!!!
Raja395:
now it is fantastic, thankyou
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