Social Sciences, asked by gaurikotarya, 4 months ago

ïi.
How did Mahatma Gandhi protest against the African organisations and
parties?

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Answered by itsme95
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Answer:

7 जून, 1893 को ही महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा का पहली बार इस्तेमाल किया था। 1893 में गांधीजी एक साल के कॉन्ट्रैक्ट पर वकालत करने दक्षिण अफ्रीका गए थे। वह उन दिनों दक्षिण अफ्रीका के नटाल प्रांत में रहते थे। किसी काम से दक्षिण अफ्रीका में वह एक ट्रेन के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सफर कर रहे थे। उनके पास वैध टिकट भी था लेकिन उनको सफेद रंग का नहीं होने के कारण कंपार्टमेंट से निकल जाने को कहा गया। गांधीजी रेलवे अधिकारियों से भिड़ गए और कहा कि वे लोग चाहें तो उनको उठाकर बाहर फेंक सकते हैं लेकिन वह खुद से कंपार्टमेंट छोड़कर नहीं जाएंगे। वास्तव में अन्याय के खिलाफ खड़े होने की यही हिम्मत तो सविनय अवज्ञा थी।

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फाइल फोटो

घटना कुछ यूं घटित हुई

गांधीजी अपने एक क्लायंट का केस लड़ने के लिए डरबन से प्रीटोरिया जा रहे थे। गांधीजी जिस लॉ फर्म में कार्यरत थे, उसने उनके लिए फर्स्ट क्लास सीट बुक की थी। रात के 9 बजे के करीब जब नटाल की राजधानी मैरित्जबर्ग पहुंचे तो एक रेलवे हेल्पर उनके पास बिस्तर लेकर आया। गांधीजी ने उनका शुक्रिया अदा किया और कहा कि उनके पास खुद का बिस्तर है। थोड़ी ही देर बाद एक दूसरे यात्री ने गांधीजी को गौर से देखा और कुछ अधिकारियों को साथ लेकर लौटा। कुछ देर सन्नाटा रहा। फिर एक अधिकारी गांधीजी के पास आया और उनसे थर्ड क्लास कंपार्टमेंट में जाने को कहा क्योंकि फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सिर्फ गोरे लोग ही सफर कर सकते थे। गांधीजी ने इस पर जवाब दिया, 'लेकिन मेरे पास तो फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट का टिकट है।' गांधीजी ने कंपार्टमेंट छोड़ने से इनकार कर दिया। इस पर उस अधिकारी ने पुलिस को बुलाने और धक्का देकर जबरन बाहर करने की धमकी दी। गांधीजी ने भी उससे कहा कि वह उनको चाहे तो धक्के मारकर बाहर कर सकता है लेकिन वह अपनी मर्जी से बाहर नहीं जाएंगे। उसके बाद उनको धक्का मारकर बाहर कर दिया गया और उनके सामान को दूर फेंक दिया गया। गांधीजी रात में स्टेशन पर ही ठंड से ठिठुरते रहे।

टर्निंग पॉइंट

इस घटना से गांधीजी टूटने की बजाए और मजबूत होकर उभरे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंग के नाम पर होने वाले भेदभाव और भारतीय समुदाय के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने का दृढ़ निश्चय किया। यहीं से गांधीजी का एक नया अवतार जन्म लेता है और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए कमर कस लेते हैं। कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद भी उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में ही रुकने का फैसला किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के एक कानून के खिलाफ मुहिम चलाई जिसके तहत भारतीय समुदाय के लोगों को वोट देने का अधिकार प्राप्त नहीं था। 1894 में उन्होंने नटाल इंडियन कांग्रेस का गठन किया और दक्षिण अफ्रीका में भारतीय नागरिकों की दयनीय हालत की ओर दुनिया का ध्यान खींचा। 1906 में ट्रांसवाल सरकार ने भारतीयों के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। उस समय गांधीजी ने पहली बार सत्याग्रह या सामूहिक सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ा। सात सालों के आंदोलन के बाद गांधीजी की कोशिश रंग लाई और दक्षिण अफ्रीकी सरकार समझौते के मेज पर आई।

दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान गांधीजी को कई बार गिरफ्तार किया। लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। मताधिकार को लेकर अफ्रीकी सरकार से समझौता होने के बाद 1913 में फिर उन्होंने अफ्रीकी सरकार के उस कदम का विरोध किया जिसके तहत भारत के बंधुआ मजदूर पर टैक्स लगाया था। उसमें भी गांधीजी की जीत हुई थी। 1914 में गांधीजी भारत लौट आए और बाद के दिनों में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई जिसका नतीजा भारत को मिली आजादी की शक्ल में सामने आया।

Explanation:

plslz translate this in eng....I don't get ans of ur que in english

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