(iii) रैदास की मति है
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चंचल है मति मेरी, कैसे भगति करूँ मैं तेरी ।। तूं मोंहि देखै, हौं तोहि देखू, प्रीति परस्पर होई। तूं मोंहि देखै, तोहि न देखू, यह मति सब बुधि खोई । सब घट अंतर रमसि निरंतर, मैं देखन नहिं जाना।
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