Hindi, asked by ar3100828, 2 months ago

ईर्ष्या को लेखक ने दोष क्यों माना है ?​

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Answered by shivasinghmohan629
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Explanation:

(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि ईर्ष्या मनुष्य के चरित्र का गम्भीर दोष नहीं है। यह भाव व्यक्ति के आनन्द में भी व्यवधान उपस्थित करता है। जिस मनुष्य के हृदय में ईष्र्या का भाव उत्पन्न हो जाती है, उसे अपना सुख ही हल्का प्रतीत होने लगता है। वह सुखद स्थिति में होते हुए भी सुख से वंचित हो जाता है।

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