ईशावास्यमिदं सर्वं यत् किञ्च जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा: मा गृधः कस्यस्विद् धनम्॥ ८. आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु। बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मन: प्रग्रहमेव च ॥ 3. नतत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः । तमेव भान्तमनुभाति सर्व तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ॥
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Answer: इस वैश्व गति में, इस अत्यन्त गतिशील समष्टि-जगत् में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सबका सब ईश्वर के आवास के लिए है। इस सबके त्याग द्वारा तुझे इसका उपभोग करना चाहिये; किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि मत डाल।
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BY BHAVYAKESH BHARGAV
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ईशावास्यमिदं सर्वं यत् किञ्च जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा: मा गृधः कस्यस्विद् धनम्॥ ८॥
- अर्थ: जो कुछ भी इस जगत् में है, वह सब ईश्वर का है। तुम उसके त्याग के द्वारा उससे भोग लो। किसी का धन मत लूटो॥
- आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु। बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मन: प्रग्रहमेव च॥ ३॥
- अर्थ: अपने आप को एक रथी के समान समझो। शरीर रथ के समान है और बुद्धि रथी के समान है। मन ही रथ का नियंत्रक है॥
- नतत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः। तमेव भान्तमनुभाति सर्व तस्य भासा सर्वमिदं विभाति॥
- अर्थ: वहाँ सूर्य नहीं चमकता है, न चंद्रमा और न तारे भी। फिर इस अग्नि को कौन प्रकाशित करता है? सब कुछ उसी को प्रकाशित करते हुए दिखता है।
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