importance of dicipline in student life in hindi
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Explanation:
किसी भी व्यक्ति के लिए विद्यार्थी जीवन अत्यंत महत्वपूर्ण है। छात्र जीवन में ही सीखी गई बातें आगे के जीवन में काम आता है। अगर छात्र विद्यार्थी जीवन में अपने समय का सदुपयोग करते हैं और ज्यादा से ज्यादा शिक्षा ग्रहण करते हैं तो आगे के भविष्य में उन्हें बहुत फायदा पहुंचता है। छात्र जीवन में अनुशासन का अत्यंत महत्व है क्योंकि अगर छात्रों में अनुशासन का अभाव होगा तो वह उपयोगी शिक्षा ग्रहण करने की जगह गलत चीजों में अपना समय नष्ट करेंगे। ज्यादातर छात्र कम उम्र के होते हैं उन्हें सही या गलत की बहुत अच्छे से परख नहीं होती है, अगर उनमें अनुशासन की कमी होगी तो वह आसानी से गलत रास्ते पर जा सकते हैं और एक बार गलत रास्ते पर जाने के बाद फिर से वापस सही रास्ते पर आने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
माता-पिता और शिक्षकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विद्यार्थी अनुशासित जीवन जी रहा है और अगर विद्यार्थी अनुशासन बनाए रखने में कष्ट महसूस कर रहा है तो इसका कारण समझना चाहिए और जिस भी कारणों से बच्चों को अनुशासन का पालन करने में कठिनाइयां आ रही हो तो उस कारण को दूर करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि छात्र जीवन ही आदमी के आगे के जीवन का आधार है। जब तक छात्र कुछ सीख रहा है उसे सीखने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए। ऐसा देखा गया है कि बहुत सारे विद्यार्थी सिर्फ परीक्षा के समय ही अच्छी तरह पढ़ाई करते हैं और बाकी समय खेलते-कूदते रहते है, उन्हें यह नहीं पता होता है कि विद्यार्थी जीवन का समय कितनी जल्दी बीत जाता है और उनका यह कीमती समय नष्ट हो जाता है इसलिए विद्यार्थी को अनुशासन में रहना चाहिए।
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विद्यार्थी और अनुशासन (Vidyarthi aur anushasan)
विद्यार्थी शब्द की तरह अनुशासन शब्द भी दो शब्दों के योग से बना है- अनु शासन। अनु उपसर्ग है, जिसका अर्थ है- विशेष या अधिक। इस प्रकार से अनुशासन का अर्थ हुआ- विशेष या अधिक अनुशासन। अनुशासन का शाब्दिक अर्थ है- आदेश का पालन या नियम सिद्धांत का पालन करना ही अनुशासन है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि नियमबद्ध जीवन व्यतीत करना अनुशासन कहलाता है। जीवन में अनुशासन की सदैव आश्वयकता होती है, परन्तु विद्यार्थी जीवन में विशेष रूप से इसकी जरूरत पड़ती है। अनुशासन ही किसी व्यक्ति सभ्य नागरिक एवं चरित्रवान बनाने में सहायक है। इसके विपरीत अनुशासनहीन व्यक्ति समाज के लिए हानिकारक होता है और अपने जीवन को भी नष्ट कर लेता है। विद्यार्थी यदि अनुशासनहीन हो जाए, तब तो वह उदण्ड प्रकृति का ही प्रमाणित होता है और वह राष्ट्र की आशाओं को खो बैठता है।
अनुशासन की शैशवावस्था से ही आश्वयकता होती है। अतः विद्यालय से ही इसका आरंभ होना चाहिए। पाश्चात्य देशों में इस ओर अधिक ध्यान दिया जाता है। विदेशों के नागरिक अधिक अनुशासन प्रिय हैं विद्यार्थियों को गुरूजनों के आदेश का पालन करना चाहिए। अपने माता पिता की आज्ञा का पालन का करना चाहिए। आज के विद्यार्थी ही कल के नेता हैं। अनुशासन से विद्यार्थी आत्मनिर्भर एवं आत्मविश्वासी बनता है। इससे यह प्रगति-पथ पर अग्रसर होता चला जाता है। व्यक्तिगत प्रगति तथा मानसिक प्रगति भी अनुशासन से ही हो सकती है।
आज का विद्यार्थी केवल इसलिए पढ़ने आता है, क्योंकि शिक्षा, शिक्षा न रहकर जीविका का साधन बन गई है। लेकिन इसके बाद भी अब उसे जीविका नहीं मिलती, तब यह बेपतवार की नाव जैसा जीवनरूपी नदी में बहता बहता उद्विग्न हो उठता है। यह केवल छात्रों के साथ होता हो, ऐसा नहीं हैं। छात्राओं के साथ भी यही होता है। ऐसे निराश विद्यार्थीयों के नेता बन कर विद्यार्थी ही प्रायः उनमें असन्तोष भरते हैं और उन्हें अनुशासनहीन बना देते हैं।
विज्ञान या इन्जीनियरिंग में पहले अनुशासनहीनता का नाम नहीं था। वे विद्यार्थी जानते थे कि परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर उन्हें नौकरी मिल जाती थी। किन्तु पिछले कुछ वर्षों में उन शिक्षा संस्थाओं में भी हड़तालें होने लगी हैं, क्योंकि विज्ञान और इन्जीनियरिंग के विद्यार्थी भी बेकार होने लगे हैं।
आज विद्यार्थी में अनुशासनहीनता व्याप्त है। अनुशासनहीनता का मुख्य कारण माता पिता का अपनी संतान के प्रति ध्यान न देना है। माता पिता की प्रकृति ही विद्यार्थी पर पर्याप्त रूप से प्रभाव डालती है। अतः विद्यार्थी में अनुशासन रहे, इसके लिए माता पिता को ही ध्यान देना चाहिए। शिक्षकों को भी विद्यार्थी को अनुशासन का महत्व समझना चाहिए। स्नेहपूर्वक उन्हें इस पर चलने की शिक्षा देनी चाहिए। अनेक महापुरूषों तथा महान राजनीतिक नेताओं के चरित्र सुनाने चाहिएं, जिससे वे उनका महत्व समझें और अपने जीवन को अन्ततः बनाएँ।
जो जीवन में अनुशासन स्थापित नहीं कर सकता, वह अपने जीवन के उदेश्य तक नहीं पहुँच सकता। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे पराजय प्राप्त होती है। वह दर दर की ठोकरें खाते घूमता है। उसे आर्थिक चक्र में पिसना पड़ता है। सामाजिक प्रतिष्ठा खोनी पड़ती है और एक दिन इस संसार में भटकते भटकते मर जाना पड़ता है।
आज प्रायः विश्व के सभी देशों में अनुशासन का अभाव हो गया है। बढ़ती हुई जनसंख्या ही इसका कारण है। नियन्त्रण का तो अभाव हो गया है। सभी संस्थाओं में चाहे वह राजकीय हो अथवा अराजकीय व्यवस्था का अभाव हो जाने से काम में दक्षता चली गई है। उत्पादन में गिरावट आ गई है। इस का मुख्या कारण केवल अनुशासनहीनता ही हो सकती है।
अतः व्यक्ति को जीवन में अनुशासन कभी नहीं खोना चाहिए। यदि यह हाथ से निकल गया, तो वह चारों ओर से व्यर्थ हो जाता है और उसने अनुशासन अपना लिया तो सफलता उसके चरण चूमेगी। अतः प्रत्येक विद्यार्थी को अनुशासन का महत्व समझना चाहिए। इससे जीवन में प्रगति की सीढ़ी पर चढ़ना चाहिए। इससे वह देश का सच्चा कर्णधार प्रमाणित होगा।
विद्यार्थी की अनुशासनहीनता की बात राजनीति से एकदम जुड़ी हुई है। यह देश की राजनीति, आर्थिक, समाजिक तथा अन्य तमाम परिस्थितियों के परिणामस्वरूप है। यदि अधिक शिक्षकों का प्रबन्ध किया जाए, शिक्षा स्तर ऊँचा किया जाए, शिक्षा का सम्बन्ध विद्यार्थी के जीवन लक्ष्य से जोड़ा जाए और बेकारी को समस्या दूर कर दी जाए, तो विद्यार्थीयों में उचित एवं आवश्यक अनुशासन की स्थापना की जा सकती है।