इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
दीरघ साँस न लेहि दुख सुख साईं नहि भूलि।
दई-दई क्यों करतु है दई दई सु कबूलि।।
कविता 'सुदामा चरित' का भाव संक्षेप में लिखें।
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विपत्तिग्रस्त व्यक्ति को उसका गुरु अथवा मित्र धैर्य प्रदान करते हुए कह रहा है कि इस विपत्ति में हा दैव! हा दैव!! क्यों करता रहता है? जो कुछ तुझे इस विपत्ति के रूप में ईश्वर ने दिया है उसे भगवत्प्रसाद मानकर स्वीकार कर ले। इस प्रकार तू दुःख में कभी लंबी साँस मत ले और सुख में ईश्वर को मत भूल। सुख अथवा दुःख ईश्वर प्रदत्त हैं, ऐसा मानकर तू उसे ग्रहण कर ले तभी तुझे सुख मिल सकता है।
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