India and nuclear security essay in Hindi
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भारत के परमाणु सिद्धांत में कोई बदलाव नहीं करने के सरकार के फैसले के कारण यह आवश्यक है कि बुनियादी बातों पर फिर से गौर किया जाए और उस उद्देश्य की पहचान की जाए, जिसकी पूर्ति के लिए भारत के परमाणु सिद्धांत की रचना की गई है।
पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक और सामरिक समुदायों के बीच भारत के परमाणु सिद्धांत की समीक्षा को लेकर बहस जारी है। सामरिक समुदाय वर्तमान भारतीय परमाणु सिद्धांत की परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने संबंधी नीति (एनएफयू) और बदले की व्यापक कार्रवाई करने संबंधी रणनीति सहित विविध कारकों पर सवालिया निशान लगाते हुए इस संबंध में विशेष तौर पर सक्रिय रहा है। आलोचक एनएफयू नीति को एक ऐसी मानक नीति करार देते रहे हैं, जो भारत के राष्ट्रीय हितों को साधने में विफल रही है।
(1) विरोधी देश से परम्परागत तौर पर श्रेष्ठ देश के लिए ऐसी नीति अपनाना भले ही उचित हो, लेकिन परम्परागत तौर पर सशक्त शत्रु के विरुद्ध यह नीति परमाणु हथियारों के उपयोग की रक्षात्मक उपयोगिता को सीमित करती है। संभवतः 1999 और 2003 में जब क्रमशः भारतीय परमाणु सिद्धांत (2) पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट के मसौदे और सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की प्रेस विज्ञप्ति द्वारा भारत के परमाणु सिद्धांत (3) के संचालन की दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा को सार्वजनिक किया गया था, तो उस समय भारत, यदि खुद को चीन से बेहतर नहीं समझता था, तो कम से कम उससे कमतर भी नहीं समझता था। हालांकि दशक भर में हालात बहुत बदल चुके हैं और चीन ऐसी सैन्य ताकत जुटा चुका है, जिसने भारत की तुलना में परम्परागत सैन्य ताकत के बीच का फासला और बढ़ा दिया है। इसलिए भारतीय परमाणु सिद्धांत में एनएफयू के इस्तेमाल का प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है और उसे हर हाल में हल किया जाना चाहिए।