Math, asked by lakshitarajput15, 13 days ago

information about Savitribai Phule in hindi​

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Answered by Anonymous
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Answer:

Savitribai Phule was an Indian social reformer, educationalist, and poet from Maharashtra. She is regarded as the first female teacher of India. Along with her husband, Jyotirao Phule, she played an important and vital role in improving women's rights in India. She is regarded as the mother of Indian feminism.

Answered by gadityamanikumar567
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Step-by-step explanation:

सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले (3 जनवरी 1831 – 10 मार्च 1897) भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। वे प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

सावित्री बाई फुले के योगदान को जिस तरह याद करना चाहिए, वैसे नहीं किया जाता

सावित्री बाई फुले ने उस दौर में कैसे स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाई होगी?

शिक्षा किसी भी देश या समाज के विकास का आधारभूत ढांचा होता है. जिस देश की शिक्षा प्रणाली उच्च कोटि की होती है, उस देश का विकास बहुत तेज गति से होता है. आज दुनिया भर में यह प्रमाणित हो चुका है कि शिक्षा हर एक नागरिक का सम्पूर्ण विकास करती है. एक ओर जहां अधिकांश अफ्रीकी देश केवल 25 से 50 प्रतिशत साक्षरता के चलते गृहयुद्ध की स्थिति में दरिद्री झेल रहे हैं. वहीं, पाश्चात्य देश 100 प्रतिशत के निकट की साक्षरता के चलते फलफूल रहे हैं. भारत में वर्तमान में यह 75 प्रतिशत के आस-पास है.

शिक्षा मनुष्य के विचारों से लेकर उसकी सम्पूर्ण जीवन शैली को प्रतिबिंबित व प्रभावित करती है. आजादी के 72 साल बाद भी भारत की शिक्षा व्यवस्था अन्य देशों की तुलना मे काफी निम्न स्तर की है, जो भारत के लिए गंभीर समस्या है. यदि भारत को बहुत तेज गति से विकास करना है, तो उसे अपनी शिक्षा व्यवस्था मे सुधार करना होगा.

इस बात का जिक्र आज हम इसलिए कर रहे हैं कि आज देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के योगदान को जिस तरह याद करना चाहिए, वैसे नहीं किया जाता. 19वीं सदी में जब देश में राजनैतिक गुलामी के साथ-साथ सामाजिक गुलामी का भी दौर था, तब सावित्री बाई फुले ने शिक्षा के महत्व को जाना, समझा और महिलाओं की आज़ादी के नए द्वार खोलकर उनमें नई चेतना का सृजन किया.

उससे पहले गुलाम भारत में महिलाओं को पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं था. आज उनकी जयंती पर उनके द्वारा किए गए योगदान को समझना और जानना और भी जरूरी हो जाता है कि कैसे उन्होंने उस दौर में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाई होगी? कैसे उन रूढ़िवादी परंपराओ को तोड़कर महिलाओं को पढ़ने व आगे बढ़ने की राह दी होगी और देश की आधी आबादी महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में ला खड़ा किया होगा. लेकिन, ऐसी समाज सेविका जिन्होंने सामाजिक कुरीतियां के खिलाफ आवाज उठाई, क्या हम उनके योगदान और बलिदान के साथ न्याय कर पाए?

कौन थी माता सावित्री बाई फुले

जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नायगांव नामक छोटे से गांव में जन्मी सावित्री बाई फुले ने अपने पति दलित चिंतक व समाज सुधारक ज्योतिराव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई. देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले एक मिसाल, प्रमाण और प्रेरणा हैं कि अगर दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति हो तो समाज में नई चेतना का विस्तार किया का सकता है.

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