Economy, asked by priyankakarnawal4185, 8 months ago

IPR 1956 के दौरान उद्योगों का वर्गीकरण कैसे किया गया​

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Answered by ayush2005301
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Answer:

भारत की प्रथम औद्योगिक नीति 1948 के पश्चात् देश में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जिनके कारण एक नयी औद्योगिक नीति की आवश्यकता महसूस होने लगी। नवीन औद्योगिक नीति की आवश्यकता के सम्बन्ध मे तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने संसद में कहा था कि - ‘‘प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा के बाद इन आठ वर्षों में भारत में काफी औद्योगिक विकास तथा परिवर्तन हुए हैं। भारत का नया संविधान बना, जिसके अन्तर्गत मौलिक अक्तिाकार (Fundamental Rights) और राज्य के प्रति निर्देशक सिद्धान्त घोषित किये गये हैं। प्रथम योजना पूर्ण हो चुकी है और सामाजिक तथा आर्थिक नीति का प्रमुख उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना मान लिया गया है, अत: आवश्यकता इस बात की है कि इन सभी बातों तथा आदर्शों के प्रति बिम्बित करते हुये एक नई औद्योगिक नीति की घोषणा की जाए। अत: भारत की नवीन औद्योगिक नीति की घोषणा 30 अप्रैल, 1956 को की गयी।

औद्योगिक नीति, 1956 के उद्देश्य -

औद्योगीकरण की गति में तीव्र वृद्धि करना।

देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए बड़े उद्योगों का विकास एवं विस्तार करना,

सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार करना,

कुटीर एवं लघु उद्योगों का विस्तार कराना,

एकाधिकार एवं आर्थिक सत्ता के संकेन्द्रण को रोकना,

रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध करना,

आय तथा धन के वितरण की असमानताओं को कम करना,

श्रमिकों के कार्य करने की दशाओं में सुधार करना,

औद्योगिक सन्तुलन स्थापित करना,

श्रम, प्रबन्ध एवं पूँजी के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित करना।

औद्योगिक नीति, 1956 की मुख्य विशेषताएँ -

(i) उद्योगो का वर्गीकरण - इस नीति में उद्योंगों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया: 1. वे उद्योग, जिनके निर्माण का पूर्ण उत्तरदायित्व राज्य पर होगा, 2. े उद्योग, जिनकी नवीन इाकाइयों की स्थापना साधारणत: सरकार करेगी,, लेकिन निजी क्षेत्र से यह आशा की जायेगी कि वह इस प्रकार के उद्योगों के विकास में सहयोग दे, 3.शेष सभी उद्योग जिनकी स्थापना और विकास सामान्यत: निजी क्षेत्र के अधीन होगा। इस नीति में उद्योगों का वर्गीकरण तीन अनुसूचियों में किया गया है -

अनुसूची ‘क’ - इनमें 17 उद्योगों को सम्मिलित किया गया है, जिसके भावी विकास का सम्पूर्ण दायित्व सरकार पर होगा। इस अनुसूची में सम्मिलित किये गये उद्योग इस प्रकार हैं - अस्त्र-शस्त्र और सैन्य सामग्री,, अणु शक्ति, लौह एवं इस्पात, भारी ढलाई, भारी मशीनें, बिजली का सामान, कोयला, खनिज तेल, लौह धातु तथा ताँबा, मैगजीन, हीरे व सोने की खानें, सीसा एवं जस्ता आदि खनिज पदार्थ, विमान निर्माण, वायु परिवहन, रेल परिवहन, टेलीफोन, तार और रेडियो उपकरण, विद्युत शक्ति का जनन और उसका वितरण। उपरोक्त समस्त उद्योग पूर्णतया सरकार के अधिकार क्षेत्र में रहेंगे।

अनुसूची ‘ख’ - इस वर्ग में वे उद्योग रखे गये हैं जिनके विकास में सरकार उत्तरोत्तर आधिक भाग लेगी। अत: सरकार इनकी नई इकाइयों की स्थापना स्वयं करेगी लेकिन निजी क्षेत्र से भी आशा की गई कि वह भी इसमें सहयोग देगा। इस वर्ग में 12 उद्योग शामिल किये - अन्य खनिज, एल्मुनियम एवं अन्य अलौह धातुएँ, मशीन औजार, लौह मिश्रित धातु, औजारी इस्पात, रसायन उद्योग, औषधियां, उर्वरक, कृतिम रबर, कोयले से बनने वाले कार्बनिक रसायन, रासायनिक घोल, सड़क परिवहन एवं समुद्री परिवहन। इस वर्ग को मिश्रित क्षेत्र की संज्ञा दी जा सकती है।

अनुसूची ‘ग’ - इस वर्ग में शेष समस्त उद्योगें को रखा गया है तथा जिनके विकास व स्थापना का कार्य निजी और सहकारी क्षेत्र पर छोड़ दिया गया, परन्तु इनके सम्बन्ध में सरकारी नियन्त्रण एवं नियमन की व्यवस्था की गई इस वर्ग को निजी क्षेत्र (Private Sector) की संज्ञा दी जा सकती है।

(ii) लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास - लघु व कुटीर उद्योग को इस औद्योगिक नीति मे भी महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया। लघु एवं कुटीर उद्योग से रोजगार के अवसर बढ़ने, आर्थिक शक्ति का विकेन्द्रीकरण होने तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने की पूर्ण सम्भावना होती है इसलिए सरकार ने इस नीति मे बड़े पैमाने के उत्पादन की मात्रा सीमित करके और उनके प्रति विभेदात्मक (Discriminatory) कर प्रणाली अपनाकर तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रत्यक्ष सहायता देकर लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन दिया।

(iii) निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग- इस नीति के अन्तगर्त सरकार ने यह स्पष्ट किया कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र पूर्णत: अलग-अलग नहीं हैं बल्कि वे एक-दूसरे के सहयोगी हैं।

(iv) निजी क्षेत्र के प्रति न्यायपूर्ण एवं भेदभाव रहित व्यवहार - इस नीति के अन्तर्गत सरकार ने स्पष्ट किया कि निजी क्षेत्र के विकास में सहायता देने की दृष्टि से सरकार पंचवष्रीय योजनाओं द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों के अनुसार विद्युत परिवहन तथा अन्य सेवाओं और राजकीय उपायों से उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन देगी, परन्तु नियों को सामाजिक और आर्थिक नीतियों के अनुरूप कार्य करना होगा।

(v) सन्तुलित औद्योगिक विकास - इस नीति में यह स्पष्ट सम्पूर्ण देश के निवासियों को उच्च जीवन स्तर उपलब्ध कराने का प्रयास करेगी।

(vi)

तकनीकी एवं प्रबन्धकीय सेवाएँ - इस नीति में इस बात को स्वीकार किया गया कि औद्योगिक विकास का कार्यक्रम चलाने लिए तकनीकी एवं प्रबन्धकीय कर्मचारक्षण सुविधाएँ देने की व्यवस्था की जायेगी तथा व्यावसायिक प्रबन्ध प्रशिक्षण सुविधाओं का विश्वविद्यालयों व अन्य संस्थाओं में विस्तार किया जायेगा। अत: देश में प्र स्थापना की जायेगी।

(vii) औद्योगिक सम्बन्ध एवं श्रम कल्याण- इस नीति में औद्योगिक सम्बन्धों को अच्छे बनाए रखने एवं 43 इसके अतिरिक्त इस नीति में उद्योगों के संचालन में संयुक्त परामर्श को प्रोत्साहित करने को भी कहा गया और औद्योगिक शान्ति को बनाए रखने पर भी जोर दिया गया।

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