Hindi, asked by sAnJaY1d2, 10 months ago

is sankat ki ghadi mein police doctors safai karamchaari ka sahayog atuliye raha hai. is vishay mein 20-25 shabdon mein vigyapan tayar kijiye

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Answered by scienceworm1
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रोग दूर करने में प्रकृति की शक्ति ही मुख्य है। हिपाक्रेटीज के काल से आज तक रोगनिवारण के लिये चिकित्सक इसी शक्ति का उपयोग करते आए हैं। वे आधुनिक साधनों का तभी प्रयोग करते हैं, जब वें देखते हैं कि प्रकृति को सहारे या सहायता की आवश्यकता है।

चिकित्सा, रोगनिवारण और रोगहरण की एक विधि एवं कला तथा वैद्यक के महत्व की एक शाखा है। इसके उद्देश्य स्वास्थ्यरक्षण, रोगनिवारण, रोगउन्मूलन, रोगों के उपद्रवों और दुष्परिणामों के निराकरण और यदि निराकरण न हो तो यथाशक्ति शमन है।

चिकित्सा, रोगनिवारण और रोगहरण की एक विधि एवं कला तथा वैद्यक के महत्व की एक शाखा है। इसके उद्देश्य स्वास्थ्यरक्षण, रोगनिवारण, रोगउन्मूलन, रोगों के उपद्रवों और दुष्परिणामों के निराकरण और यदि निराकरण न हो तो यथाशक्ति शमन है।एक्युप्रेशर योग नेचुरोपैथी काउंसिल नेचुआजलालपुर के संस्थापक डा0 श्री प्रकाश बरनवाल का कहना है कि ""चिकित्सक चिकित्सा करता है और प्रकृति रोगहरण करती है""। रोगों से बचने की रोगियों में शक्ति होती है, जिससे दवा न करने पर भी असंख्य रोगी नीरोग हो जाते है। चिकित्सा ऐसी होनी चाहिए कि वह रोगहरण की शक्तियों में कोई बाधा न डाले, वरन् उसमें सहयोग दे। इसके लिये चिकित्साकर्म में अत्यंत व्यग्रता न दिखानी चाहिए और न रोगियों को नैसर्गिक शक्ति के भरोसे ही छोड़ना, या उत्साहहीन चिकित्सा करनी, चाहिए।

चिकित्सा, रोगनिवारण और रोगहरण की एक विधि एवं कला तथा वैद्यक के महत्व की एक शाखा है। इसके उद्देश्य स्वास्थ्यरक्षण, रोगनिवारण, रोगउन्मूलन, रोगों के उपद्रवों और दुष्परिणामों के निराकरण और यदि निराकरण न हो तो यथाशक्ति शमन है।एक्युप्रेशर योग नेचुरोपैथी काउंसिल नेचुआजलालपुर के संस्थापक डा0 श्री प्रकाश बरनवाल का कहना है कि ""चिकित्सक चिकित्सा करता है और प्रकृति रोगहरण करती है""। रोगों से बचने की रोगियों में शक्ति होती है, जिससे दवा न करने पर भी असंख्य रोगी नीरोग हो जाते है। चिकित्सा ऐसी होनी चाहिए कि वह रोगहरण की शक्तियों में कोई बाधा न डाले, वरन् उसमें सहयोग दे। इसके लिये चिकित्साकर्म में अत्यंत व्यग्रता न दिखानी चाहिए और न रोगियों को नैसर्गिक शक्ति के भरोसे ही छोड़ना, या उत्साहहीन चिकित्सा करनी, चाहिए।स्वास्थ्य को बनाए रखना और रोग तथा महामारियों को उत्पन्न न होने देना रोग निवारक चिकित्सा (preventive therapy)के अंतर्गत आता है। रोग हो जाने पर उसके नाश के लिये की जानेवाली चिकित्सा को रोगहारक चिकित्सा (curative therapy) कहते हैं। जब रोगविज्ञान, विकृतिविज्ञान, द्रव्यगुण विज्ञान इत्यादि विषयों के सम्यक् ज्ञान पर चिकित्सा अधिष्ठित होती है तब उसे युक्तिमूलक चिकित्सा (rational therapy) कहते हैं। परंपरागत अनुभव चिकित्सा का आनुभाविक (empirical) चिकित्सा कहते हैं। चिकित्सा रोगहारक (radical), लाक्षणिक (nonspecific) हो सकती है।

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