इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।
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उत्तर :
इस अध्याय में भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना निम्न प्रकार से है :
भारत माता तथा जर्मेनिया दोनों की छवि एक राष्ट्र की पहचान के रूप में प्रस्तुत की गई है । भारत माता भारत राष्ट्र तथा जर्मनिया जर्मन राष्ट्र की प्रतीक है। भारत माता की विख्यात छवि को स्वदेशी आंदोलन की प्रेरणा से अवनींद्रनाथ टैगोर ने चित्रित किया । इसमें भारत माता को एक सन्यासिनी के रूप में दर्शाया गया है । वह शांत, गंभीर , दैवी तथा आध्यात्मिक गुणों से संपन्न दिखाई देती है । भारत माता की छवि को एक नए रूप में भी चित्रित किया गया। इसमें भारत माता को हाथ में त्रिशूल लिए दिखाया गया है। वह हाथी तथा शेर के बीच खड़ी है। दोनों शक्ति और सत्ता के प्रतीक है।
इसी प्रकार जर्मेनिया की छवि को चित्रकार फिलिप वेट ने चित्रित किया है। इसमें वह बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहने हुए हैं क्योंकि जर्मनी का बलूत वीरता का प्रतीक है । यह दोनों छवियां अपने अपने देशवासियों के लिए अगाध श्रद्धा की पात्र हैं।
आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।
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व्याख्या करें -
(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी।
(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया।
(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे।
(घ) गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया।
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निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें -
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
(ख) साइमन कमीशन
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Explanation:
समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है – समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।
अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।
इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।
मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।