Hindi, asked by Anonymous, 10 months ago

इस कविता का भावार्थ लिखें​

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Answered by Niharikamishra24
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जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये’- गीतकार गोपाल दास नीरज की ये पंक्तियां कभी बचपन में पढ़ी थीं। शायद 45-46 साल पहले। तब ये ही समझ पाया था कि ये पंक्तियां केवल दीपावली जैसे त्योहार के लिए लिखी गई हैं पर बाद में इस कविता को पढऩे पर इसका अर्थ खुला। इसी कविता में नीरज आगे कहते हैं-

‘सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में

कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी

मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी

कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी

चलेगा सदा नाश का खेल यूं ही

भले ही दिवाली यहां रोज आए’

दीपावली के आरंभ के पीछे कथा यह है कि असत्य पर सत्य की विजय के बाद राम अयोध्या लौटे। उनके स्वागत में अयोध्या को दीपमालिका से सजाया गया। हर घर में उल्लास था कि राम के लौटने के बाद अब रामराज्य होगा। ऐसा रामराज्य जिसमें सभी सुखी हों और मनुष्यता का साम्राज्य चारों ओर होगा। राम भी आए, अयोध्या प्रफुल्लित भी हुई लेकिन कोई न कोई तो असंतुष्ट ही रहा।

आलोचक अपनी आलोचना से बाज न आए और सीता एक बार फिर निर्वासित हुईं। लोग दिवाली मनाते रहे और सीता को धरती की गोद में शरण लेनी पड़ी। अयोध्या के घी के दीपक सीता के जीवन में रामराज्य का सुख न ला सके। फिर भी सीता ने अपना शेष जीवन आत्माभिमान के साथ जिया।

दीपावली का उल्लेख पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है। हर्ष के नाटक नागानंद में इस उत्सव की चर्चा की गई है और इसे दीपप्रतिपादुत्सव: कहा गया है। राजशेखर काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कहते हैं। यह त्योहार केवल हिन्दुओं का ही नहीं है बल्कि इसे सिख, बौद्ध और जैन धर्म को मानने वाले लोग भी मनाते हैं। साथ ही प्रवासी भारतीय भी धूमधाम से दीपावली मनाते हैं।

दीपक ज्ञान, सत्य और प्रकाश का प्रतीक है। वह स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। यह भारतीय परंपरा है जो अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीने को महत्व देती है। यह परंपरा निजता में नहीं बल्कि सार्वजनीनता में विश्वास रखती है जो किसी एक के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए विचार करती है। यह भारतीय परंपरा ही है जो अंधकार को अज्ञान का प्रतीक मानती है और प्रकाश को ज्ञान और शक्ति का। कहा भी गया है-तमसो मा ज्योतिर्गमय।

आज यह तिमिरांधकार फैला हुआ है चारों ओर अशिक्षा, अज्ञान, भ्रष्टाचार, शोषण और दमन के रूप में। जहांं मनुष्यता का बोलबाला होना चाहिए वहां अमानवीयता अपने पैर पसार रही है। जिस समाज में उपलब्ध संसाधन सबके लिए होने चाहिए वहां सारा कुछ केवल कुछ लोगों के लिए हो, इस विचार की हिमायत की जा रही है। विद्रूपताओं का विस्तार हो गया है, धर्मांधता ने धर्म की व्याख्या बदल दी है और कर्मशीलता का महत्व कम हो चला है। अब हम यह सोचते हैं कि ईमानदारी तो हो पर दूसरे ईमानदार बने रहें हमारे लिए, हम ईमानदार नहीं होंगे।

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Answered by Anonymous
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Isme kavi gyan ki prakaash ki baat karta hai. Kavi siksha ko mol vistaar me batata hai . Kavi neeraj kehna chahte hai ki hame agyanta ke andhere ko nasht karne ka prayas karna chahiye.Isme kavi gyan ki prakaash ki baat karta hai. Kavi siksha ko mol vistaar me batata hai . Kavi neeraj kehna chahte hai ki hame agyanta ke andhere ko nasht karne ka prayas karna chahiye.Isme kavi gyan ki prakaash ki baat karta hai. Kavi siksha ko mol vistaar me batata hai . Kavi neeraj kehna chahte hai ki hame agyanta ke andhere ko nasht karne ka prayas karna chahiye.Isme kavi gyan ki prakaash ki baat karta hai. Kavi siksha ko mol vistaar me batata hai . Kavi neeraj kehna chahte hai ki hame agyanta ke andhere ko nasht karne ka prayas karna chahiye.

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