इसके साथ ही भारी मात्रा में गंगा में प्रवाहित होने वाले सीवरेज और कंपनियों के अपशिष्ट से भी गंगा का पानी जहर में बदल गया है।
पवित्र गंगा को गंदा करने के पीछे रंगा हुआ चमड़े की धुलाई भी एक बड़ी वजह है। उत्तर प्रदेश के कानपुर में फैक्ट्रियों द्वारा छोड़े गए पानी से गंगा नदी का पवित्र जल मैला हो गया है।
हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे भक्तों का सैलाब पूरे साल लगा रहता है जहां पर हजारों की भीड़ में एकसाथ पूजा अर्चना की जाती है। यह भी प्रदूषण की एक बड़ी वजह है।
गंगा स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो साबुन का इस्तेमाल करते हैं। और कपड़े भी धोने लगते हैं।
उत्तराखंड के देवप्रयाग, ऋषिकश और हरिद्वार में नदी के किनारे बैठकर शाम के समय बड़ी संख्या में लोग आरती करते हुए देखे जाते हैं। वह पूजा सामग्री को नदी में ही बहा देते हैं। इससे भी गंगा प्रदूषित होती है।
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भारत में बोतल बंद पानी के दिन बहुत बाद में आए हैं. पहले लोग अपने साथ पानी की बोतल लेकर नहीं चलते थे. लेकिन लगभग हर हिंदू परिवार में पानी का एक कलश या कोई दूसरा बर्तन ज़रुर होता था जिसमें पानी भरा होता था. गंगा का पानी.
पीढ़ियाँ गुज़र गईं ये देखते-देखते कि हमारे घरों में गंगा का पानी रखा हुआ है- किसी पूजा के लिए, चरणामृत में मिलाने के लिए, मृत्यु नज़दीक होने पर दो बूंद मुंह में डालने के लिए जिससे कि आत्मा सीधे स्वर्ग में जाए.
मिथक कथाओं में, वेद , पुराण , रामायण महाभारत सब धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन है.
कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे.
इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज़ जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था. इसके विपरीत अंग्रेज़ जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था.
करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया.
दिलचस्प ये है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है.
'कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता'
लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है.
डॉक्टर नौटियाल ने यह परीक्षण ऋषिकेश और गंगोत्री के गंगा जल में किया था, जहाँ प्रदूषण ना के बराबर है. उन्होंने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था. एक ताज़ा, दूसरा आठ साल पुराना और तीसरा सोलह साल पुराना.
गंगा नदी का पानी औद्योगिक प्रदूषण के साथ साथ गंदगी का शिकार है
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गंगा नदी का पानी औद्योगिक प्रदूषण के साथ साथ गंदगी का शिकार है
उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला. डॉ. नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक एक हफ़्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन. यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया.
डॉ. नौटियाल बताते हैं, “गंगा के पानी में ऐसा कुछ है जो कि बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं को मार देता है. उसको नियंत्रित करता है.”
हालांकि उन्होंने पाया कि गर्म करने से पानी की प्रतिरोधक क्षमता कुछ कम हो जाती है.
वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ाज वायरस होते हैं. ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं.
अपने अनुसंधान को और आगे बढ़ाने के लिए डॉक्टर नौटियाल ने गंगा के पानी को बहुत महीन झिल्ली से पास किया. इतनी महीन झिल्ली से गुजारने से वायरस भी अलग हो जाते हैं. लेकिन उसके बाद भी गंगा के पानी में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता थी.
डॉक्टर नौटियाल इस प्रयोग से बहुत आशांवित हैं. उन्हें उम्मीद है कि आगे चलकर यदि गंगा के पानी से इस चमत्कारिक तत्व को अलग कर लिया जाए तो बीमारी पैदा करने वाले उन जीवाणुओं को नियंत्रित किया जा सकता है, जिन पर अब एंटी बायोटिक दवाओं का असर नहीं होता.
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