Hindi, asked by sudhabisht1502, 7 months ago

इसमें दिखाई गई हमारी मूलभूत ( आवश्यकताओं की कमी हमारे जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, और किस प्रकार हम अपने बेहतर भविष्य के लिए इन आवश्यकताओं का ' संरक्षण तथा बचाव 'कर सकते है ।​

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Answered by sanya2004srivastav
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Answer:

Explanation: "सरकार ने लाॅकडाउन ढीला कर दिया है परन्तु कोरोना का क्या?" सामाजिक जन-चेतना के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है। लाॅकडाउन - 1 और लाॅकडाउन - 4 के नियमों और छूट में जमीन-आसमान का अन्तर है। लाॅकडाउन ढीला करने के सन्दर्भ में सरकार के पास अपने तर्क हैं । परन्तु कोरोना किसी भी प्रकार के तर्क-वितर्क की परवाह न करते हुए वर्तमान में सवा लाख से अधिक लोगों को ग्रसित कर चुका है और दिन-प्रतिदिन संख्या में वृद्धि हो रही है।  

अब स्थिति यह है कि लाॅकडाउन के ढीलेपन और कोरोना के कहर के मध्य नागरिकों को स्वयं की भूमिका का निर्धारण करना है।  

आजकल एक बात सोशल मीडिया पर खूब प्रसारित हो रही है -

"ध्यान रहे लाॅकडाउन के ढीलेपन का इन्तजार केवल आप ही नहीं कर रहे, बल्कि कोरोना वायरस भी कर रहा है।"

इन पंक्तियों में सच्चाई स्पष्ट रूप से झलक रही है परन्तु हम लापरवाह लोग इन पंक्तियों को गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं। समाचारों के माध्यम से जन-जन को पता है कि सामाजिक/शारीरिक दूरी का जगह-जगह पर मज़ाक उड़ाया जा रहा है। मास्क चेहरों पर लगे तो हैं परन्तु मास्क का सही उपयोग करना और उसके साथ बरती जाने वाली सावधानियों का कितने लोगों को ज्ञान है अथवा ज्ञान है भी तो पालन कितना किया जा रहा है? आप सेनीटाइजेशन की बात करते हैं लोग साबुन से हाथ धोने में भी आलस्य की परम्परा का खूब निर्वाह कर रहे हैं।

मुझे आश्चर्य होता है कि लोग सरकारी नियमों के डर से लाॅकडाउन का पालन कर रहे थे जबकि लाॅकडाउन का पालन तो कोरोना के कारण होना चाहिए - "लाॅकडाउन में छूट सरकार ने दी है, कोरोना ने नहीं।"  

अप्रत्यक्ष कोरोना अभी अपनी पूरी शक्ति से कायम है और कोरोना से बचाव हेतु सारी सावधानियों के विषय में पिछले दो माह से सोशल मीडिया, समाचार-पत्रों और हमारे मित्रों द्वारा इतना व्यापक प्रसार किया जा चुका है कि सभी को इनके विषय में पता है तो फिर ढीले लाॅकडाउन और कोरोना के मध्य शेष रहता है स्वयं के ऊपर स्वयं द्वारा लागू किये जाने वाला "स्व-लाॅकडाउन।"  

मेरी दृष्टि में, इस ढीले लाॅकडाउन में कोरोना से बचाव का एकमात्र उपाय "स्वानुशासन" है।  

बंदिशें, पाबन्दियां भला किसी को कहां अच्छी लगती है,  

स्वहित में हो बंदिशें तो स्वतन्त्रता कहां अच्छी लगती है।  

संकल्प आवश्यक है स्वहित में स्वानुशासन का 'तरंग',  

हृदय के पटल पर कोरोना की सत्ता कहां अच्छी लगती है।

- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'

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