इसराइल क्यों और किन-किन तरीकों से विश्व का एक नया केंद्र है
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यहूदियों के धर्मग्रंथ "पुराना अहदनामा" के अनुसार यहूदी जाति का निकास पैगंबर हज़रत अबराहम (इस्लाम में इब्राहिम, ईसाइयत में Abraham) से शुरू होता है। अबराहम का समय ईसा से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व है। अबराहम के एक बेटे का नाम इसहाक और पोते का याकूब (ईसाईयत में Jacob) था। याकूब का ही दूसरा नाम इज़रायल था। याकूब ने यहूदियों की 12 जातियों को मिलाकर एक किया। इन सब जातियों का यह सम्मिलित राष्ट्र इज़रायल के नाम के कारण "इज़रायल" कहलाने लगा। आगे चलकर इबरानी भाषा में इज़रायल का अर्थ हो गया-"ऐसा राष्ट्र जो ईश्वर का प्यारा हो"।
याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा अथवा जूदा था। यहूदा के नाम पर ही उसके वंशज यहूदी (जूदा-ज्यूज़) कहलाए और उनका धर्म यहूदी धर्म (जुदाइज्म) कहलाया। प्रारंभ की शताब्दियों में याकूब के दूसरे बेटों की संतानें इज़रायल या "बनी इज़रायल" के नाम से प्रसिद्ध रही। फ़िलिस्तीन और अरब के उत्तर में याकूब की इन संततियों की "इज़रयल" और "जूदा" नाम की एक दूसरी से मिली हुई किंतु अलग-अलग दो छोटी-छोटी सल्तनतें थीं। दोनों में शताब्दियों तक गहरी शत्रुता रही। अंत में दोनों मिलकर एक हो गईं। इस सम्मिलन के परिणामस्वरूप देश का नाम इज़रायल पड़ा और जाति का यहूदी।
यहूदियों के प्रारंभिक इतिहास का पता अधिकतर उनके धर्मग्रंथें से मिलता है जिनमें मुख्य बाइबिल का वह पूर्वार्ध है जिसे "पुराना अहदनामा" (ओल्ड टेस्टामेंट) कहते हैं। पुराने अहदनामे में तीन ग्रंथ शामिल हैं। सबसे प्रारंभ में "तौरेत" (इबरानी थोरा) है। तौरेत का शब्दिक अर्थ वही है जो "धर्म" शब्द का है, अर्थात् धारण करने या बाँधनेवाला। दूसरा ग्रंथ "यहूदी पैगंबरों का जीवनचरित" और तीसरा "पवित्र लेख" है। इन तीनों ग्रंथों का संग्रह "पुराना अहदनामा" है। पुराने अहदनामें में 39 खंड या पुस्तकें हैं। इसका रचनाकाल ई.पू. 444 से लेकर ई.पू. 100 के बीच है। पुराने अहदनामे में सृष्टि की रचना, मनुष्य का जन्म, यहूदी जाति का इतिहास, सदाचार के उच्च नियम, धार्मिक कर्मकांड, पौराणिक कथाएँ और यह्वे के प्रति प्रार्थनाएँ शामिल हैं।
सन् 1917 में ब्रिटिश सेनाओं ने इस पर अधिकार कर लिया। 2 नवम्बर सन् 1917 को ब्रिटिश विदेश मंत्री बालफ़ोर ने यह घोषणा की कि इज़रायल को ब्रिटिश सरकार यहूदियों का धर्मदेश बनाना चाहती है जिसमें सारे संसार के यहूदी यहाँ आकर बस सकें। मित्रराष्ट्रों ने इस घोषण की पुष्टि की। इस घोषणा के बाद से इज़रायल में यहूदियों की जनसंख्या निरंतर बढ़ती गई। लगभग 21 वर्ष (दूसरे विश्वयुद्ध) के पश्चात् मित्रराष्ट्रों ने सन् 1948 में एक इज़रायल नामक यहूदी राष्ट्र की विधिवत् स्थापना की।
5 जुलाई सन 1950 को इज़रायल की पार्लामेंट ने एक नया कानून बनाया जिसके अनुसार संसार के किसी कोने से यहूदियों को इज़रायल में आकर बसने की स्वतंत्रता मिली। यह कानून बन जाने के सात वर्षों के अंदर इज़रायल में सात लाख यहूदी बाहर के देशों से आकर बसे।
इज़रायल में जनतंत्री शासन है। वहाँ एकसंसदीय पार्लामेंट है जिसे "सेनेट" कहते हैं। इसमें 120 सदस्य सानुपातिक प्रतिनिधान की चुनाव प्रणाली द्वारा प्रति चार वर्षों के लिए चुने जाते हैं। इज़रायल का नया जनतंत्र एक ओर आधुनिक वैज्ञानिक साधनों के द्वारा देश को उन्नत बनाने में लगा हुआ है तो दूसरी ओर पुरानी परंपराओं को भी उसने पुनर्जीवन दिया है, जिनमें से एक है शनिवार को सारे कामकाज बंद कर देना। इस प्राचीन नियम के अनुसार आधुनिक इज़रायल में शनिवार के पवित्र "सैबथ" के दिन रेलगाड़ियाँ तक बंद रहती हैं।
यहूदियों ने ही पश्चिमी धर्मों में नबियों और पैगंबरों तथा इलहामी शासनों का आरंभ और प्रचार किया। उनके नबियों ने, विशेषकर छठी सदी ई.पू. के नबियों ने जिस साहस और निर्भीकता से श्रीमानों और असूरी सम्राटों को धिक्कारा है और जो बाइबिल की पुरानी पोथी में आज भी सुरक्षित है, उसका संसार के इतिहास में सानी नहीं। उन्होंने ही नेबुखदनेज्ज़ार की अपनी बाबुली कैद में बाइबिल के पुराने पाँच खंड (पेंतुतुख) प्रस्तुत किए। इसी से बाबुल के संबध से ही संभवत: बाइबिल का यह नाम पड़ा।
दक्षिण पश्चिम एशिया में स्थित एक देश है। यह दक्षिणपूर्व भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर स्थित है। इसके उत्तर में लेबनॉन, पूर्व में सीरिया और जॉर्डन तथा दक्षिण-पश्चिम में मिस्र है।
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