it is very urgent जल के सत्रोत निबंध
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India-Water-source
भारत का भूगोल भूगोल सामान्य अध्ययन
भारत: जल-स्रोत India: Water-source
October 25, 2015 admin 5202 Views 0 Comment
जल-स्रोत
भारत जल संसाधन के मामले में समृद्ध है। भारत में विशाल नदियों का जाल बिछा हुआ है तथा भूमिगत जल धारण करने वाले विशाल जलोढ़ बेसिन मौजूद हैं| फिर भी भारत के अलग-अलग क्षेत्रों की स्थिति में व्यापक अंतर है। एक क्षेत्र सूखा तो दूसरा क्षेत्र बाढ़ से ग्रस्त रहता है। वैसे जल का प्रमुख उपयोग सिंचाई में है। इसके अतिरिक्त औद्योगिक तथा घरेलू उपभोग़ के लिए काफी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है।
देश में औसत वार्षिक जल उपलब्धता 1869 बिलियन क्यूबिक मीटर (बी.सी.एम.) अनुमानित है। इसमें से उपयोग में लाया जाने वाला जल संसाधन 1123 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जिसमें 690 बी.सी.एम. सतह जल और 433 बी.सी.एम. भूजल है।
जल के स्रोत
जल संसाधनों को दो विशिष्ट श्रेणियों में बांटा जा सकता है- भूपृष्ठीय जल संसाधन एवं भूमिगत जल संसाधन। इनमें प्रत्येक श्रेणी पृथ्वी की जल प्रवाह प्रणाली का एक भाग है, जिसे जल चक्र कहा जाता है। जलचक्र की उत्पत्ति वर्षण (हिम एवं जल) द्वारा होती है। उक्त दोनों श्रेणियां एक-दूसरे पर निर्भर है तथा एक का लाभ स्पष्टतः दूसरे की हानि है। जल के विभिन्न स्रोतों का विवेचन नीचे किया गया है।
वर्षा: भारत में औसतन 118 सेमी. वर्षा होती है। भारत के जल संसाधनों का एक बड़ा अनुपात उन क्षेत्रों में है, जहां औसतन 100 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है। वर्षा भूमिगत जलभूतों के पुनर्भरण को मुख्य साधन भी है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भूमिगत जलभूत सामान्यतः नुनखरे होते हैं, उदाहरण के लिए, पश्चिमी राजस्थान के कुओं का खारा जल सिंचाई उपयोग में भी नहीं लाया जा सकता।
वर्षा प्रतिरूप में भी व्यापक स्थानीय एवं अस्थायी अंतर पाये जाते हैं। जहां मेघालय की खासी पहाड़ियों पर वर्ष में लगभग 1100 सेमी. तक वर्षा होती है, वहीं पश्चिमी राजस्थान के भागों में यह 10 सेमी. वार्षिक से भी कम होती है। भारत में वर्षा का लगभग 80 प्रतिशत मानसून काल के चार महीनों (जून से सितंबर तक) में प्राप्त होता है। भारतीय भूमि पर होने वाले कुल वर्षा की अनुमानित मात्रा लगभग 3700400 मिली. मीटर है। इस मात्रा का एक-तिहाई वाष्पीकरण में खर्च हो जाता है। लगभग 22 प्रतिशत का निस्पंदन तथा शेष नदी प्रणालियों में प्रवाहित हो जाता है।
भूतल प्रवाह: भूपृष्ठीय जल कई प्रकार से भूमिगत जल के पुनर्सचयन में योगदान देता है, जैसे-
नदियों के समृद्ध प्रवाह द्वारा;
प्राकृतिक झीलों, तालाबों आदि के माध्यम से होने वाले रिसाव द्वारा;
कृत्रिम जल भंडारों, बांधों एवं नहरों से होने वाले रिसाव द्वारा, तथा;
सिंचाई से वापसी प्रवाह द्वारा इत्यादि।
नदियों को वर्षा के अतिरिक्त बर्फ पिघलने से भी जल प्राप्त होता है। जल की नदियों पर बांध बनाकर नियंत्रित व संचित किया जाता है।
झीलें
झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारों तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भू-पटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती है, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पायी जाती हैं। भारत में कुछ महत्वपूर्ण झीलें हैं- डल और वुलर झील (जम्मू-कश्मीर), चिल्का झील (ओडीशा), सांभर, फलोदी, कछार, लूनकरनसर, राजसमन्द और पुष्कर झील (राजस्थान), भीमताल, सातताल, नौकुचिया ताल खुरपाताल, नैनीताल, पूनाताल, मालवाताल झील (उत्तराखण्ड), खज्जियर, रेणुका झील (हिमाचल प्रदेश), कोरोमण्डल तट पर पुलिकट झील (आंध्र प्रदेश-तमिलनाडु सीमा), कालीवेली और वीरनाम झील (तमिलनाडु),हुसैन सागर और कोलेरू झील (आंध्र प्रदेश),बेम्बानाड झील (केरल) तथा लोकटक झील (मणिपुर)।
जल-प्रपात
जब किसी पर्वत इत्यादि की अत्यंत ऊंचाई से बड़ी मात्रा में जल गिरता है तो जल-प्रपात की सृष्टि होती है। यह कई कारकों, जैसे-शैलों की सापेक्ष प्रतिरोधकता, भू-पृष्ठीय उभारों की सापेक्ष विभेदता, समुद्र तल से ऊंचाई, पुनरुत्थान की प्रक्रियाएं तथा भू-संचलन इत्यादि पर निर्भर करता है।
भारत के अधिकांश जल-प्रपात दक्षिणी भारत में पाए जाते हैं। इनका निर्माण प्रायः पश्चिमी घाट से अरब सागर में प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा हुआ है। प्रमुख जल-प्रपातों का विवरण निम्नानुसार है-
जोग: यह महाराष्ट्र व कर्नाटक की सीमा पर शरावती नदी पर है। इसकी ऊंचाई लगभग 250 मीटर है।
पायकारा: यह नीलगिरि के पर्वतों में पायकारा नदी पर है। इस प्रपात में पानी लगभग 90 मीटर की ऊंचाई से गिरता है।
शिवसमुद्रम: यह कावेरी नदी पर है तथा इसमें पानी लगभग 100 मीटर की ऊंचाई से गिरता है।
गोकक: यह बेलगांव में गोकक नदी पर है तथा इसकी ऊंचाई 54 मीटर है।
येन्ना: यह महाबलेश्वर के निकट है तथा इसकी ऊंचाई 180 मीटर है।
चूलिया: यह चम्बल नदी में कोटा के समीप निर्मित है। इसकी ऊंचाई लगभग 18 मीटर है।
मंधार एवं पुनासा: ये दोनों प्रपात नर्मदा नदी पर जबलपुर के समीप है। इनकी ऊंचाई लगभग 12 मीटर है।
बिहार प्रपात: जब दक्षिणी टोंस नदी विन्ध्याचल के पठार को पार करके निकलती है तो बिहार प्रपात का निर्माण होता है। यह लगभग 110 मीटर ऊंचाई पर है।
उपरोक्त उल्लिखित प्रपातों के अतिरिक्त भी भारत में कई जल-प्रपात जल-विद्युत के उत्पादन के प्रमुख
भारत का भूगोल भूगोल सामान्य अध्ययन
भारत: जल-स्रोत India: Water-source
October 25, 2015 admin 5202 Views 0 Comment
जल-स्रोत
भारत जल संसाधन के मामले में समृद्ध है। भारत में विशाल नदियों का जाल बिछा हुआ है तथा भूमिगत जल धारण करने वाले विशाल जलोढ़ बेसिन मौजूद हैं| फिर भी भारत के अलग-अलग क्षेत्रों की स्थिति में व्यापक अंतर है। एक क्षेत्र सूखा तो दूसरा क्षेत्र बाढ़ से ग्रस्त रहता है। वैसे जल का प्रमुख उपयोग सिंचाई में है। इसके अतिरिक्त औद्योगिक तथा घरेलू उपभोग़ के लिए काफी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है।
देश में औसत वार्षिक जल उपलब्धता 1869 बिलियन क्यूबिक मीटर (बी.सी.एम.) अनुमानित है। इसमें से उपयोग में लाया जाने वाला जल संसाधन 1123 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जिसमें 690 बी.सी.एम. सतह जल और 433 बी.सी.एम. भूजल है।
जल के स्रोत
जल संसाधनों को दो विशिष्ट श्रेणियों में बांटा जा सकता है- भूपृष्ठीय जल संसाधन एवं भूमिगत जल संसाधन। इनमें प्रत्येक श्रेणी पृथ्वी की जल प्रवाह प्रणाली का एक भाग है, जिसे जल चक्र कहा जाता है। जलचक्र की उत्पत्ति वर्षण (हिम एवं जल) द्वारा होती है। उक्त दोनों श्रेणियां एक-दूसरे पर निर्भर है तथा एक का लाभ स्पष्टतः दूसरे की हानि है। जल के विभिन्न स्रोतों का विवेचन नीचे किया गया है।
वर्षा: भारत में औसतन 118 सेमी. वर्षा होती है। भारत के जल संसाधनों का एक बड़ा अनुपात उन क्षेत्रों में है, जहां औसतन 100 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है। वर्षा भूमिगत जलभूतों के पुनर्भरण को मुख्य साधन भी है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भूमिगत जलभूत सामान्यतः नुनखरे होते हैं, उदाहरण के लिए, पश्चिमी राजस्थान के कुओं का खारा जल सिंचाई उपयोग में भी नहीं लाया जा सकता।
वर्षा प्रतिरूप में भी व्यापक स्थानीय एवं अस्थायी अंतर पाये जाते हैं। जहां मेघालय की खासी पहाड़ियों पर वर्ष में लगभग 1100 सेमी. तक वर्षा होती है, वहीं पश्चिमी राजस्थान के भागों में यह 10 सेमी. वार्षिक से भी कम होती है। भारत में वर्षा का लगभग 80 प्रतिशत मानसून काल के चार महीनों (जून से सितंबर तक) में प्राप्त होता है। भारतीय भूमि पर होने वाले कुल वर्षा की अनुमानित मात्रा लगभग 3700400 मिली. मीटर है। इस मात्रा का एक-तिहाई वाष्पीकरण में खर्च हो जाता है। लगभग 22 प्रतिशत का निस्पंदन तथा शेष नदी प्रणालियों में प्रवाहित हो जाता है।
भूतल प्रवाह: भूपृष्ठीय जल कई प्रकार से भूमिगत जल के पुनर्सचयन में योगदान देता है, जैसे-
नदियों के समृद्ध प्रवाह द्वारा;
प्राकृतिक झीलों, तालाबों आदि के माध्यम से होने वाले रिसाव द्वारा;
कृत्रिम जल भंडारों, बांधों एवं नहरों से होने वाले रिसाव द्वारा, तथा;
सिंचाई से वापसी प्रवाह द्वारा इत्यादि।
नदियों को वर्षा के अतिरिक्त बर्फ पिघलने से भी जल प्राप्त होता है। जल की नदियों पर बांध बनाकर नियंत्रित व संचित किया जाता है।
झीलें
झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारों तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भू-पटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती है, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पायी जाती हैं। भारत में कुछ महत्वपूर्ण झीलें हैं- डल और वुलर झील (जम्मू-कश्मीर), चिल्का झील (ओडीशा), सांभर, फलोदी, कछार, लूनकरनसर, राजसमन्द और पुष्कर झील (राजस्थान), भीमताल, सातताल, नौकुचिया ताल खुरपाताल, नैनीताल, पूनाताल, मालवाताल झील (उत्तराखण्ड), खज्जियर, रेणुका झील (हिमाचल प्रदेश), कोरोमण्डल तट पर पुलिकट झील (आंध्र प्रदेश-तमिलनाडु सीमा), कालीवेली और वीरनाम झील (तमिलनाडु),हुसैन सागर और कोलेरू झील (आंध्र प्रदेश),बेम्बानाड झील (केरल) तथा लोकटक झील (मणिपुर)।
जल-प्रपात
जब किसी पर्वत इत्यादि की अत्यंत ऊंचाई से बड़ी मात्रा में जल गिरता है तो जल-प्रपात की सृष्टि होती है। यह कई कारकों, जैसे-शैलों की सापेक्ष प्रतिरोधकता, भू-पृष्ठीय उभारों की सापेक्ष विभेदता, समुद्र तल से ऊंचाई, पुनरुत्थान की प्रक्रियाएं तथा भू-संचलन इत्यादि पर निर्भर करता है।
भारत के अधिकांश जल-प्रपात दक्षिणी भारत में पाए जाते हैं। इनका निर्माण प्रायः पश्चिमी घाट से अरब सागर में प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा हुआ है। प्रमुख जल-प्रपातों का विवरण निम्नानुसार है-
जोग: यह महाराष्ट्र व कर्नाटक की सीमा पर शरावती नदी पर है। इसकी ऊंचाई लगभग 250 मीटर है।
पायकारा: यह नीलगिरि के पर्वतों में पायकारा नदी पर है। इस प्रपात में पानी लगभग 90 मीटर की ऊंचाई से गिरता है।
शिवसमुद्रम: यह कावेरी नदी पर है तथा इसमें पानी लगभग 100 मीटर की ऊंचाई से गिरता है।
गोकक: यह बेलगांव में गोकक नदी पर है तथा इसकी ऊंचाई 54 मीटर है।
येन्ना: यह महाबलेश्वर के निकट है तथा इसकी ऊंचाई 180 मीटर है।
चूलिया: यह चम्बल नदी में कोटा के समीप निर्मित है। इसकी ऊंचाई लगभग 18 मीटर है।
मंधार एवं पुनासा: ये दोनों प्रपात नर्मदा नदी पर जबलपुर के समीप है। इनकी ऊंचाई लगभग 12 मीटर है।
बिहार प्रपात: जब दक्षिणी टोंस नदी विन्ध्याचल के पठार को पार करके निकलती है तो बिहार प्रपात का निर्माण होता है। यह लगभग 110 मीटर ऊंचाई पर है।
उपरोक्त उल्लिखित प्रपातों के अतिरिक्त भी भारत में कई जल-प्रपात जल-विद्युत के उत्पादन के प्रमुख
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