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कहानी कला के तत्वों के आधार पर 'कर्मनाशा की हार की समीक्षा
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‘कर्मनाशा की हार’ कहानी की समीक्षा
‘कर्मनाशा की हार’ शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित एक चरित्र प्रधान सामाजिक कहानी है। उन्होंने इस कहानी के माध्यम से समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और अन्धविश्वास का विरोध किया है। प्रस्तुत कहानी की समीक्षा इस प्रकार है
कथानक
‘कनाशा की हार’ एक चरित्र प्रधान कहानी है। इसमें मैरो पाण्डे के व्यक्तित्व के माध्यम से बहानीकार ने प्रगतिशील सामाजिक दृष्टिकोण का समर्थन किया है। कहानी में कहीं भी दिखावा नहीं है। इसमें कहानीकार ने जीवन के छोटे-छोटे क्षणों को पिरोया है। लेखक ने कहानी के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि समाज का शक्तिशाली वर्ग समाज का ठेकेदार बना हुआ है। वह कुछ भी कर सकता है, जबकि कमजोर वर्ग यदि उन्हीं कार्यो को करता है, तो उन्हें दण्डित किया जाता है। इस कहानी में एक ब्राह्मण युवक कुलदीप अपने घर के समीप रहने वाली मल्लाह परिवार की विधवा फुलमत से प्रेम करने लगता है|
परिवार के सदस्य उसे स्वीकार नहीं करते तथा अपने बड़े भाई मैरों पाण्डे की डॉट से घबराकर कुलदीप घर छोड़कर भाग जाता है। फुलमत एक बच्चे को जन्म देती है। तभी र्मनाशा नदी में बाढ़ आ जाती है, जिसे लोग फुलमत के पाप का परिणाम मानकर उसे और उसके बच्चे को नदी में फेंककर बलि देना चाहते हैं, जिससे नदी में आई बाढ़ समाप्त हो। इसका विरोध करते हुए प्रगतिशील मैरी पाण्डे उसे अपनी कुलवधू के रूप में स्वीकार करके गाँव वालों का मुँह बन्द कर देते हैं।
पात्र और चरित्र-चित्रण
प्रस्तुत कहानी में मुख्य पात्र भैरो पाण्डे हैं। मैरो पाण्डे को ही कहानी का नायक भी कहा जा सकता है। इनका चरि-चित्रण बहुत ही मनोवैज्ञानिक ढंग से हुआ है। प्रारम्भ में वे लोक-लाज से आतंकित हैं, लेकिन शीघ्र ही उनमें मानवतावादी दृष्टिकोण प्रस्फुटित होता है। वे कायरता छोड़कर उदारता का परिचय देते हैं और मानवता की रक्षा के लिए पूरे समाज से ड़ि जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य उल्लेखनीय पात्रों में कुलदीप एवं फुलमत हैं।
कुलदीप में किसी सीमा तक मर्यादा का बोध भी है, जिसके कारण वह चुपचाप घर छोड़कर चला जाता है, जबकि फुलमत अपने प्रेम की निशानी अपने बच्चे को जन्म देकर अपनी पवित्र भावना को दर्शाती है। मुखिया ग्रामीण समाज का प्रतिनिधि तथा अन्धदियों का समर्थक चरित्र है। वह ईष्र्यालु एवं क्रूर है। इस प्रकार, चरित्र चित्रण की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है।
कथोपकथन या संवाद
इस कहानी की संवाद योजना में नाटकीयता के साथ-साथ सजीवता तथा स्वाभाविकता के गुण भी मौजूद हैं। संवाद, पात्रों के चरि-उद्घाटन में सहायक हुए हैं, जिससे पात्रों की मनोवृत्तियों का उद्घाटन हुआ है। वे संक्षिप्त, रोचक, गतिशील, सरस और पात्रानुकूल हैं।
देशकाल और वातावरण
‘कर्मनाशा की हार’ एक आँचलिक कहानी है। इस कहानी में स्वाभाविकता लाने के उद्देश्य से वातावरण की सृष्टि की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। एक कुशल शिल्पी की तरह कथाकार नै देशकाल और वातावरण का चित्रण किया है। इसके अन्तर्गत सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों का चित्रण हुआ है। लेखक ने कर्मनाशा की बाढ़ का चित्र ऐसा खींचा है, जैसे पाठक किनारे पर खडा होकर बाढ़ का भीषण ढूश्य देख रहा हो |
भाषा-शैली
भाषा में ग्रामीण शब्दावली मानुष, डीह, तिताई, दस, बिटवा, चौरा आदि का प्रयोग किया गया है। साथ ही मुहावरे तथा लोकोक्तियों का भी प्रयोग करके कथा के वातावरण को सजीव बनाया गया है, जैसे-दाल में काला होना, पेट में जैसे-हौसला, सैलाब आदि के साथ-साथ दोहरे प्रयोग वाले शब्द; जैसे-लोग-बाग, उठल्ले-निठल्ले आदि के कारण भाषा में और अधिक सजीवता आ गई है।
इस कहानी में शिल्पगत विशेषताओं व अधिक फ्लैशबैक की पद्धति का प्रयोग करके लेखक ने घटनाओं की तारतम्यता को कुशलता से जोड़ा है। कहानी की शैली की एक और विशेषता है सजीव चित्रण और सटीक उपमाएँ। कहानीकार में बाढ़ की विभीषिका का बड़ा ही जीवन्त तथा रोमांचक चित्रण किया है।
उद्देश्य
उपेक्षिता के प्रति सहानुभूति एवं संवेदना व्यक्त करना तथा उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देना इस कहानी का एक मुख्य उद्देश्य है। इसमें शोषित वर्ग की आवाज को बुलन्द किया गया है। यह कहानी प्रगतिशीलता एवं मानवतावाद का समर्थन करती है। इसमें अन्धविश्वासों को खण्डित किया गया हैं तथा वैययिक व सामाजिक सभी प्रकार के स्तरों पर होने वाले शोषण का विरोध किया गया है।
शीर्षक
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक कथावस्तु को पूर्णतः सफल बनाने का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें प्रतीकात्मक भाव स्वतः ही देखने को मिलता है। ‘कर्मनाशा नदी’ को इस कहानी में अन्धकार निरर्थक तथा रूदि के प्रतीक के रूप में चित्रित कर कहानीकार ने अपनी लेखनी का सफल सामंजस्य किया है। अन्त में कर्मनाशा नदी को नरबलि का न मिलना उसकी हार तथा मानवता की विजय को प्रदर्शित करता है। अतः ‘कर्मनाशा की हार’ शीर्षक सरल, संक्षिप्त, नवीन व कौतूहलवक है, जो कहानी की कथावस्तु के अनुरूप सटीक व अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है।
Explanation:
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