जागो और जगाओ
(जागरणजीत)
जागो और जगाओ।
बीत चुकीं आलस की घड़ियाँ,
जाग उठीं अब सारी चिड़ियाँ।
जागे फूल, खिलीं अब कलियाँ।
तुम भी जागो, आओ।
जागो और जगाओ।
जाग रहा है कोना-कोना,
फिर अपना यह कैसा सोना।
क्या सोकर है सब कुछ खोना?
उठो, होश में आओ।
जागो और जगाओ।
अब्दुल रहमान सागरी
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