जाके प्रिय न राम बैदेही।
तजिए उसे कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।
तज्योपिता प्रहलाद, विभीषण बंधु, भरत महतारी।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितनि, भय मुद-मंगलकारी।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं।
अंजन कहा आँखि जेहि फूटै बहुतक कहौ कहाँ लौं।
तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासो होत सनेह राम पद ऐतो मतो हमारे ॥ ras konsa h
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I don't about hindhiiii
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