Hindi, asked by amitrana55576, 5 months ago

जेल का जीवन कैसा होता है​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

शाम पांच बजे की अंतिम पचासा बजने तक जेल को जिनके रिहाई का आदेश मिल चुका होता है, उनकी ही रिहाई उस दिन संभव हो पाती है। अंतिम पचासा यानी शाम पांच बजे के बाद आए रिहाई आदेश वाले कैदी अगले दिन जेल से बाहर आ पाते हैं। जेल में किसी भी तरह का खतरा होने पर जेल का घंटा बेतुके ढंग से बजाया जाता है।

Answered by sonu5264
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Answer:

भोपाल. सुबह छह बजे। सेंट्रल जेल की सभी बैरकों से कैदी ग्राउंड में इकट्ठा होना शुरू हो गए हैं। लाउड स्पीकर पर दूर-दूर तक गूंज रहा है-ऐ मालिक तेरे बंदे है हम, ऐसे हो हमारे करम, नेकी पर चलें और बदी से डरें...। हर बंदी के लिए प्रार्थना में मौजूद रहना जरूरी है। न रहने पर सजा, वह भी सबके सामने।

इसके बाद कैदी अपनी मर्जी से घूम फिर सकते हैं। आठ बजे हर बैरक के बाहर भीड़ होने लगती है। यह ड्रम में आने वाली बेस्वाद चाय का वक्त है। चाय के बर्तन लिए लंबी कतारों में कैदी खड़े होते हैं। यह चाय कम, चाय जैसा गर्म पानी ज्यादा। चाय के साथ कभी मीठा तो कभी नमकीन दलिया, कभी पोहा नाश्ते में। दोपहर बारह बजे थाली और कटोरी, गिलास लिए भोजन के इंतजार में हैं। 6 रोटी के साथ पनियल दाल और बेजायका सब्जी। हफ्ते में एक दिन मीठा मिलना है। कभी मीठा दलिया तो कभी पीले मीठे चावल। संडे को हलुआ। त्यौहार में पूड़ी पक्की। दिन भर के इस आहार पर सरकार देती है 50 रुपए प्रति कैदी।

किचन पर रोज डेढ़ लाख खर्चा

करीब 3000 कैदी यहां हैं। इनमें 1700 सजायाफ्ता हैं। शहर में यह अकेली ऐसी जगह है, जहां हर दिन इतने लेागों के लिए सबसे बड़ा किचन काम करता है। हर कैदी पर 50 रुपए रोज के हिसाब से डेढ़ लाख रुपए। यानी 45 लाख रुपए महीना। सालाना 5 करोड़ 40 लाख रुपए। भवन मेंटेनेंस, चिकित्सा, शिक्षा, बिजली, ऑफिस मेंटेनेंस, वेतन-भत्ते, वाहन आदि मदों में करीब 10 करोड़ सालाना बजट अलग। कुल बजट करीब 15 करोड़ है।

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