जेल में रहने वाले कैदियों की दशा व दिनचर्या की कल्पना करते हुए 150 शब्दों
का एक अनुच्छेद लिखिए।
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मुर्गे की बांग पर जगने-जगाने का दौर भले पीछे छूट गया लेकिन आज भी अधिकांश जेलों में बंदियों को वक्त और जिम्मेदारी का एहसास घंटे की गूंज पर ही होता है।
हर साठ मिनट बाद बजने वाले घंटे उन्हें समय बताते हैं तो ‘पचासा’ की एकमुश्त गूंज उन्हें उनकी जिम्मेदारी बताती है। सुबह से शाम तक चार बार पचासा गूंजती है, जिनका हर बार उद्देश्य अलग-अलग होता है।
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