जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि विलोकत पातक भारी।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
यमक अलंकार
अनुप्रास अलंकार
श्लेष अलंकार
उपमा अलंकार
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i think second option is correct
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