जीनी प्रौद्योगिकी क्या है ? इसका मानव स्वास्थ्य में
उपयोग का वर्णन कीजिए ।
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इस तकनीक में दो DNA अणुओं को सर्वप्रथम कोशिका केन्द्रक से पृथक् किया जाता है और एक या अधिक प्रकार के विशेष एन्जाइम, रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम (restriction enzyme) के द्वारा उनके टुकड़े किये जाते हैं। इसके बाद इन टुकड़ों को इच्छानुसार जोड़कर कोशिका में पुनरावृत्ति व जनन के लिए पुनः स्थापित कर दिया जाता है। संक्षेप में जीन क्लोनिंग या आनुवंशिक इन्जीनियरिंग विदेशी (foreign) DNA के एक विशिष्ट टुकड़े को कोशिका में स्थापित करना होता है।
आर्बर (Arber, 1962) ने बैक्टीरिया कोशिकाओं में रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम (restriction enzyme) नामक ऐसे पदार्थ की उपस्थिति की जानकारी प्राप्त की जो किसी भी बाह्य डी०एन०ए० को विशिष्ट टुकड़ों में तोड़ने के लिए एक तीव्र रसायन का कार्य करता है। यह न्यूक्लिक अम्ल की फॉस्फेट-शर्करा बन्धता को तोड़ता है। किसी बैक्टीरिया पर जब कोई विषाणु आक्रमण करता है तब यह प्रक्रिया उसमें रक्षास्थल का कार्य करती है। स्मिथ (Smith, 1970) ने ग्राम ऋणात्मक बैक्टीरिया हीमोफिलस इन्फ्लुएन्जी (Hemophilus influenzae) से रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम विलगित किया और सन् 1971 में नैथन्स ने बन्दर के ट्यूमर विषाणु (एसवी 40) के DNA को तोड़ने के लिए एक एन्जाइम का उपयोग किया।
सन् 1978 तक लगभग 100 से भी अधिक विभिन्न प्रकार के रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम या निर्बन्धन एण्डोन्यूक्लिएज (restriction endonuclease) विलगित करके लक्षणित किये जा चुके थे। इस प्रकार इसकी खोज सन् 1970 में आर्बर, नैथन्स एवं स्मिथ (Arber, Nathans and Smith) ने की। इसके लिए उन्हें वर्ष 1978 ई० में नोबेल पुरस्कार भी मिला। इसी से जीन अभियान्त्रिकी की नींव पड़ी।
जीनी अभियान्त्रिकी के विभिन्न उपयोग
आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग व्यावसायिक उत्पादनों, अनेक मानव जीन्स की खोज, रोगों के कारण व उनके इलाज की सहायता में हो रहा है। हम जीन्स के नियन्त्रण में संश्लेषित होने वाले अनेक लाभदायक पदार्थों का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन कर सकते हैं। इस प्रौद्योगिकी के महत्त्वपूर्ण प्रयोज्य इस प्रकार हैं –
1. जीन्स का निर्माण – किसी विशेष कोशिका से m-RNA अणु को अलग करके प्रतिवर्ती ट्रांस्क्रिप्टेज (reverse transcriptase) एन्जाइम की सहायता से इस पर DNA श्रृंखला का संश्लेषण कराया जा सकता है।
2. जीन का विश्लेषण तथा संग्रह – DNA अणुओं को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर उनका संग्रह करके किसी भी जीव के सम्पूर्ण जीनोम का विश्लेषण किया जा सकता है। इसे “जीनी संग्रह के रूप में रिकॉर्ड किया जा सकता है। संग्रह की इस विधि को “शॉटगन विधि (shotgun method)’ कहते हैं।
3. जीन्स को प्रतिस्थापन – जीनी चिकित्सा (gene therapy) से अवांछित जीन्स को हटाया जा सकता है और इसके स्थान पर नये वांछित जीन्स को प्रवेश कराया जा सकता है। इस प्रकार
व्यक्ति की लम्बाई, बुद्धि, ताकत आदि को नियन्त्रित किया जा सकता है।
4. रोगजनक विषाणुओं का रूपान्तरण – रोगजनक विषाणुओं के आनुवंशिक पदार्थ में परिवर्तन करके कैंसर, एड्स (AIDS) आदि रोगों के विषाणुओं को रोगजनक के बजाय इन्हीं रोगों के
उपचार में प्रयोग किया जा सकता है।
5. विषाणु प्रतिरोधी मुर्गियाँ – जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा मुर्गियों की ऐसी प्रजातियों का विकास किया गया है जो विषाणुओं के संक्रमण का प्रतिरोध करती हैं।
6. व्यक्तिगत जीन्स को अलग करना – कुछ जीन्स को अलग करने की तकनीक विकसित की गयी, जो निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत की जा सकती हैं –
विशेष प्रकार की प्रोटीन बनाने वाली जीन,
r-RNA की जीन्स तथा
नियन्त्रण करने वाली जीन्स; जैसे- प्रोमोटर जीन तथा रेगुलेटरी जीन। चूजों में ओवोएल्ब्यूमिन की जीन, चूहों में ग्लोबिन तथा इम्यूनोग्लोबिन जीन्स, अनाजों व लेग्यूम्स में प्रोटीन संग्रह की जीन्स आदि को पृथक् किया जा चुका है।
7. समुद्री तेल फैलाव का सफाया – इसमें पहले एक प्लाज्मिड में कई जीन्स को जोड़कर एक पुनसँयोजित DNA बनाया जाता है और इसका पुंजकीकरण करके एक समुद्री जीवाणु में प्रवेश कराया जाता है। यह जीवाणु समुद्री सतह पर फैले तेल का सफाया कर देता है। इसे उच्चझक्की जीवाणु (superbug bacterium) कहते हैं।
8. पौधों में नाइट्रोजन अनुबन्धन – पुनर्संयोजी DNA प्रौद्योगिकी के द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता रखने वाले जीवाणुओं का संवर्द्धन करके इन्हें फलीरहित पादपों में प्रविष्ट कराया जाता है।
9. आनुवंशिक रोगों का पता लगाना – अनेक रोगों का गर्भ में ही एम्निओसेण्टेसिस (amniocentesis) तकनीक द्वारा पता लगाया जाता था, किन्तु DNA पुनर्संयोजन तकनीक द्वारा पुंजकीकृत डी०एन०ए० क्रम (cloned DNA sequence) के उपलब्ध होने से गर्भस्थ शिशु के पूरे जीनोटाइप का निरीक्षण किया जा सकता है। इस विधि के द्वारा बिन्दु उत्परिवर्तन, विलोपन आदि सभी उत्परिवर्तनों का पता लगाया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग गर्भस्थ शिशु में थैलेसीमिया, फिनाइलकीटोन्यूरिया आदि रोगों का पता लगाने के लिए किया जा रहा है।
10. औद्योगिक रसायन – पेट्रोल, ईंधन, कीटनाशी, आसंजक (adhesives), प्रणोदक (propellants), विलायक (solvents), रंजक (dyes), विस्फोटक आदि कई प्रकार के पदार्थ हमें खनिज तेल पदार्थों से प्राप्त होते हैं। इन्हें हम जीनी अभियान्त्रिकी द्वारा रूपान्तरित जीवाणुओं की सहायता से पादपों के किण्वन से प्राप्त कर सकते हैं।
11. इस तकनीक के द्वारा इन्सुलिन तथा मानव वृद्धि हॉर्मोन का उत्पादन किया जा रहा है।
12. इस तकनीक द्वारा मानव इण्टरफेरॉन (interferon) (ल्यूकोसाइटिक इण्टरफेरॉन, फाइब्रोब्लास्टिक इण्टरफेरॉन, प्रतिरक्षक इण्टरफेरॉन) का उत्पादन किया जा रहा
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genie prayogik kya hai iska manav shastra mein upyog ka varnan kijiye