ज्ञान सिंहको मवेशी पालने का बहुत शौक था । प्रायः उसके घर के दरवाजे पर भैस या गाय बंधी तीन बरस पहले उसने एक जर्सी गाय खरीदी थी। उसका नाम उसने लक्ष्मी रखा था । अधेड़ । लक्ष्मी इतना दूध दे देती थी कि उससे घर की जरूरत पूरी हो जाने के बाद बाकी दूध गली के कुछ घशा चला जाता । दूध बेचना ज्ञान सिंहका धंधा नहीं था। केवल गाय को चारा और दर्राआदिदेने के लिए कुछपैसे जुटा लेता था । नौकरी से अवकाश के बाद ज्ञान सिंहको कंपनी का वहमकान खाली करना था समस् याथी तो लक्ष्मीकी । वह लक्ष्मी को किसी भी हालत में बेच नहीं सकता था । उसे अपने साथ ले जाना भी संभव नहीं था । जब अवकाश में दस-पंद्रहदिन ही रहगए तो करामत अली से कहा- मियाँ। अगर लक्ष्मीको तुम् हे सौप दूं तो क्या तुम उसे स्वीकार करोगे...?" विच्छेद में प्राप्त ज्ञान सिंह संबंधी जानकारी
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