जिओ और जीने दो मारा कोणसे वाद मे आता है
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हिन्दू- मुस्लिम -सिक्ख -इसाई
लड़ता -मरता देश
कहाँ तरक्की ले आएगा
ये उजड़ा परिवेश
सब समान! सबका विकास!
ये कैसा झूठाँ नारा?
सत्ता का ये लोभ करेगा कैसे
न्याय हमारा?
ऊँच -नीच,और धर्म -जाति ये
आहत वर्ग -विशेष
कहाँ तरक्की ले आएगा ये
उजड़ा परिवेश
हर टुकड़ा बस अपना सोचे
कहाँ एकता आएगी
स्वार्थ लिप्त हो जाओगे तो
दुनिया लाभ उठाएगी
भ्रष्टाचार सिखाता हमको
असली- नकली वेश
कहाँ तरक्की ले आएगा
ये उजड़ा परिवेश
सोचो अगर एक ना होते
क्या आजादी आती?
सोचो अगर साथ ना चलते
कैसे रीति बदलती?
बीत गई जो बात मूर्खता से
उसको दोहराना
इतनी नफरत पालोगे तो
होगा फिर पछताना
अपना और पराया करते
बढ़ता सिर्फ क्लेश
कहाँ तरक्की ले आएगा
ये उजड़ा परिवेश
एक तरफ सामान्य लड़ेगा
आरक्षण की लड़ाई
एक तरफ कुछ दलित लड़ेगे
हमने लाठी खाई
एक तरफ मुस्लिम बोलेगें
हम नाहक बदनाम
सबके हाथों लट्ठ थमा दो
फिर देखो संग्राम
रक्तपात कर लो आपस मे
दो सबको संदेश
कहाँ तरक्की ले आएगा ये
उजड़ा परिवेश
थोड़ा -थोड़ा खाओ सबको
अपने हक की खाने दो
जो गरीब है कोई भी हो उनको
ऊपर आने दो
ऊँच -नीच और जाति-पाति का
झूठाँ दम्भ मिटाने दो
साथ -साथ लहराओ तिरंगा
सबको हाथ बढ़ाने दो
तभी लगा पाओगे मिलकर तुम
विकास का रेस
कहाँ तरक्की ले आएगा ये उजड़ा
परिवेश
- डॉ.शिवानी सिंह
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
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I can't understand your words sorruy