जो रहीम उत्तम प्रकति, का कार स
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥
1.
रूठे (सुजन मनाईए, जो रूहैं सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार ।
अपने सेवकोट)
रहिमन देखि, बड़ेन, को, (लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
रहिमन यहि संसार में, सब सो मिलिए धाई।
ना जाने केहि रूप में, नारायण मिल जाई॥
सधूर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान
तनिक सीत जल सौं मिटै, जैसे दूध उफान॥
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