Hindi, asked by debraprice4896, 10 months ago

जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटे कोई। सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई॥ इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?

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Answered by Dhruv4886
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कबीर दास जी कहते है की जिस प्रकार लकड़ी मे अग्नि का निवास अविनाशी है उसी प्रकार परमात्मा सभी जीवों के अंदर आत्मा स्वरूप मे व्याप्त है और अजर-अमर है| बधाई लकड़ी को चीर सकता है परन्तु उसमे निहित अग्नि को नष्ट नहीं कर सकता उसी प्रकार मानव शरीर भी नष्ट हो जाता है परन्तु आत्मा सदैव अमर रहती है|

Answered by ankitabareth200787
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Answer:

इस काव्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि ईश्वर सर्वव्यापक है, उसे काटा या मिटाया नहीं जा सकता। ईश्वर सभी के हृदयों में आत्मा के रूप में व्याप्त है। वह व्यापक स्वरूप धारण करता है।

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