जिसे भारतीय संस्कृत कहा जाना चाहिए वह आज भारतीय मानसिक शितित में क्रियाशील नहीं है। आज एक प्रकार की
अव्यवस्थित व्यावसायिक संस्कृति व्याप्त है, जिसकी जड़ शायद यूरोप में है। भारतीयों के सार्वजनिक व्यवहार में गुरु शिष्य
संबंश का भी तदनुरूप परिवर्तन हो गया है। यहां गुरु तेलन भोगी नहीं होते थे और ना शिष्य को ही शुल्क देना पड़ता था। पैसे
देकर विद्या खरीदने की यह क्रय विक्रय पद्धति निस्संदेह इस भारतीय मिट्टी की उपज नहीं है। यहां शिक्षणालय एका प्रकार के
आश्रम अथवा मदिर के समान थे। गुरु को साक्षात् परमेश्वर ही समझा जाता था। शिष्य पुत्र से अधिक प्रिय होते थे। यहां
सम्मान मिलना ही शक्ति पाने का रहस्य हैवाचीन काल में गुरु की शिकायम किया उनकी आध्यात्मिक अनुसार यी परमेवार
प्राप्ति का उनका वह एक माध्यम था। वह आज पेट पालने का जरिया बन गई है।
Answers
Answered by
0
Answer:
you are totally correct you know our culture has just you know
Similar questions
Social Sciences,
3 months ago
Math,
3 months ago
Hindi,
7 months ago
Biology,
7 months ago
History,
1 year ago