Hindi, asked by Harpreet5415, 8 months ago

जूतों के बंद को बेतरतीब से क्यों बांध लिया गया है?​

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Answered by sup271
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प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं. सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुर्ता और धोती पहने हैं. कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियां उभर आयी हैं, पर घनी मूंछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं.

पांवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बंधे हैं. लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है. तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं.

दाहिने पांव का जूता ठीक है, मगर बायें जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल अायी है. मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गयी है. सोचता हूं - फोटो खिंचवाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी - इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है. यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है.

मैं चेहरे की तरफ देखता हूं. क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अंगुली बाहर दिख रही है? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है? जरा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अंगुली ढक सकती है? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है!

फोटोग्राफर ने जब ‘रेडी-प्लीज’ कहा होगा, तब परंपरा के अनुसार तुमने मुस्कान लाने की कोशिश की होगी, दर्द के गहरे कुएं के तल में कहीं पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर उपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही ‘क्लिक’ करके फोटोग्राफर ने ‘थैंक यू’ कह दिया होगा. विचित्र है यह अधूरी मुस्कान. यह मुस्कान नहीं, इसमें उपहास है, व्यंग्य है!

यह कैसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो खिचा रहा है, पर किसी पर हंस भी रहा है!

फोटो ही खिचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते, या न खिचाते. फोटो न खिचाने से क्या बिगड़ता था. शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होंगे. मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजडी’ है कि आदमी के पास फोटो खिचाने को भी जूता न हो. मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूं, मगर तुम्हारी आंखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है.

तुम फोटो का महत्व नहीं समझते. समझते होते, तो किसी से फोटो खिचाने के लिए जूते मांग लेते. लोग तो मांगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं. और मांगे की मोटर से बारात निकालते हैं. फोटो खिचाने के लिए तो बीवी तक मांग ली जाती है, तुमसे जूते ही मांगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्व नहीं जानते. लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए! गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है!

टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पांच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे. जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है. अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियां न्योछावर होती हैं. तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे. यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूं. तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है!

मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है. यों उपर से अच्छा दिखता है. अंगुली बाहर नहीं निकलती, पर अंगूठे के नीचे तला फट गया है. अंगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है. पूरा तला गिर जायेगा, पूरा पंजा छिल जायेगा, मगर अंगुली बाहर नहीं दिखेगी. तुम्हारी अंगुली दिखती है, पर पांव सुरक्षित है. मेरी अंगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है. तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं!

तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता. फोटो तो जिंदगी भर इस तरह नहीं खिचाउं, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे.

तुम्हारी यह व्यंग्य- मुस्कान मेरे हौसले पस्त कर देती है. क्या मतलब है इसका? कौन सी मुस्कान है यह?

- क्या होरी का गोदान हो गया?

क्या पूस की रात में नीलगाय हलकू का खेत चर गयी?

- क्या सुजान भगत का लड़का मर गया; क्योंकि डॉक्टर क्लब छोड़कर नहीं आ सकते?

नहीं, मुझे लगता है माधो औरत के कफन के चंदे की शराब पी गया. वही मुस्कान मालूम होती है.

मैं तुम्हारा जूता फिर देखता हूं. कैसे फट गया यह, मेरी जनता के लेखक?

क्या बहुत चक्कर काटते रहे?

क्या बनिये के तगादे से बचने के लिए मील-दो मील का चक्कर लगाकर घर लौटते रहे?

चक्कर लगाने से जूता फटता नहीं है, घिस जाता है. कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया था. उसे बड़ा पछतावा हुआ. उसने कहा - ‘आवत जात पन्हैया घिस गयी, बिसर गयो हरि नाम.’

और ऐसे बुलाकर देने वालों के लिए कहा था - ‘जिनके देखे दुख उपजत है, तिनको करबो परै सलाम!’

चलने से जूता घिसता है, फटता नहीं. तुम्हारा जूता कैसे फट गया?

मुझे लगता है, तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो. कोई चीज जो परत-पर-परत सदियों से जम गयी है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया. कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आजमाया.

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