जाति प्रथा पर अंबेडकर के विचारों की
व्याख्या कीजिए
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Explanation:
मनु के बारे में उन्होंने कहा कि अगर कभी मनु रहे भी होंगे तो बहुत ही हिम्मती रहे होंगे। डॉ. आंबेडकर का कहना है कि ऐसा कभी नहीं होता कि जाति जैसा शिकंजा कोई एक व्यक्ति बना दे और बाक़ी पूरा समाज उसको स्वीकार कर ले। उनके अनुसार इस बात की कल्पना करना भी बेमतलब है कि कोई एक आदमी क़ानून बना देगा और पीढ़ियाँ-दर-पीढ़ियाँ उसको मानती रहेंगी। हाँ, इस बात की कल्पना की जा सकती है कि मनु नाम के कोई तानाशाह रहे होंगे जिनकी ताक़त के नीचे पूरी आबादी दबी रही होगी और वे जो कह देंगे, उसे सब मान लेंगे और उन लोगों की आने वाली नस्लें भी उसे मानती रहेंगी।उन्होंने कहा कि मैं इस बात को ज़ोर देकर कहना चाहता हूँ कि मनु ने जाति की व्यवस्था की स्थापना नहीं की क्योंकि यह उनके बस की बात नहीं थी। मनु के जन्म के पहले भी जाति की व्यवस्था कायम थी। मनु का योगदान बस इतना है कि उन्होंने इसे एक दार्शनिक आधार दिया। जहाँ तक हिन्दू समाज के स्वरूप और उसमें जाति के मह्त्व की बात है, वह मनु की हैसियत के बाहर था और उन्होंने वर्तमान हिन्दू समाज की दिशा तय करने में कोई भूमिका नहीं निभाई। उनका योगदान बस इतना ही है उन्होंने जाति को एक धर्म के रूप में स्थापित करने की कोशिश की।
Given: जाति प्रथा पर अंबेडकर के विचारों की
व्याख्या कीजिए
Answer: जाति प्रथा पर अंबेडकर जी के विचारों की व्याख्या कुछ इस प्रकार है ।
भीमराव अंबेडकर एक महान विचारक व तेजस्वी वक्ता और दलितों के मसीहा के रूप में जाने जाते हैं अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल , 1891 को मध्यप्रदेश के नगर इंदौर में महू के समीप छावनी में हुआ था। अंबेडकर जी ने सम्पूर्ण जीवन भर समाज में जातिवाद के उन्मूलन के लिए प्रयास किया तथा अंबेडकर ने समाज में जातिवाद व छूआछूत को जड़ से समाप्त करने के लिए प्रयास किया सार्वजनिक स्थानों में निम्न जाति के साथ भेदभाव को समाप्त करना चाहते थे। धर्म के आधार पर किऐ जाने वाले भेदभाव को मिटाने के लिए हिंदु कोड बिल को पारित करवाया था। अंबेडकर ने समाज में स्त्रियों की स्वतंत्रता का समर्थन करते हुऐ स्त्री शिक्षा पर भी जोर दिया। इनके अनुसार शिक्षा के माध्यम से ही लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बन सकते है।
उन्होंने समाज में समानता व स्वतंत्रता के लिए प्रयास किऐ है। सन् 1946 में अंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘ शुद्र कौन है ’ प्रकाशित की थी। और कानून मंत्री के रुप में उनका सबसे बड़ा कार्य हिंदु कोड बिल था। इस कानून का उद्देश्य हिंदुओ के सामाजिक जीवन में सुधार लाना था। अंबेडकर ने अपने जीवन में महात्माबुद्ध , ज्योतिबा फूले और कबिर जी के विचारों से भी प्रभावित थे।
अंबेडकर को अपने लंबे जीवन के अनुभव से विश्वास हो गया था कि हिंदु धर्म में रहकर न तो छुआछूत का निवारण हो सकता है और न ही अस्पृश्य जातियों का उत्थान इसलिए उन्होंने हिंदु धर्म को छोड़ने का भी विचार बना लिया।
Explanation :
अंबेडकर समाज सुधारक व सामाजिक चिंतक थे। उनके चिन्तन का मुख्य विषय हिंदु समाज में पाई जाने वाली बुराईयाँ थी। जिनका शिकार हिंदु समाज में अनुसूचित जातियाँ , जनजातियाँ से हो रही थी। इनको समाज में शुद्र , अस्पृश्य और अछूत , हरिजन के नाम से संबोधित किया जाता था। अंबेडकर इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था को अन्यायपूर्ण , भेदभावपूर्ण मानता था और समाज में सामाजिक व्यवस्था के लिए खतरा मानता थे।
समाज में निम्न - जातियों के स्तर पर सुधार - सुझाव :
अंबेडकर ने निम्न जातियों के लिए सार्वजनिक स्थलों के प्रयोग की स्वतंत्रता की बातचीत किये हैं और अंबेडकर ने हरिजन शब्द का प्रयोग का विरोध भी किये थे ।
अंबेडकर ने समाज में निम्न के बदलाव के लिए तीन शब्दों के प्रयोग पर जोर दिये थे शिक्षित बनो , संगठित रहो , संघर्ष करो इन्हीं तीन शब्दों के माध्यम से अंबेडकर द्वारा निम्न जातियों का बदलाव के लिए भी प्रयत्न किये ।
#SPJ3