Hindi, asked by poornimadehariya824, 2 months ago

जाति शून्यता ka
प्रमेय proof kijiye

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Answered by tanishkachauhan777
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hope it helps you

Explanation:

a^2=b^2+c^2

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Answered by krishna210398
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जाति शून्यता

Explanation:

शून्यवाद या शून्यता बौद्धों की महायान शाखा माध्यमिक नामक विभाग का मत या सिद्धान्त है जिसमें संसार को शून्य और उसके सब पदार्थों को सत्ताहीन माना जाता है (विज्ञानवाद से भिन्न)।

"माध्यमिक न्याय" ने "शून्यवाद" को दार्शनिक सिद्धांत के रूप में अंगीकृत किया है। इसके अनुसार ज्ञेय और ज्ञान दोनों ही कल्पित हैं। पारमार्थिक तत्व एकमात्र "शून्य" ही है। "शून्य" सार, असत्, सदसत् और सदसद्विलक्षण, इन चार कोटियों से अलग है। जगत् इस "शून्य" का ही विवर्त है। विवर्त का मूल है संवृति, जो अविद्या और वासना के नाम से भी अभिहित होती है। इस मत के अनुसार कर्मक्लेशों की निवृत्ति होने पर मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर उसी प्रकार शांत हो जाता है जैसे तेल और बत्ती समाप्त होने पर प्रदीप।

ध्यान देने की बात यह है कि यह शून्य कोई निषेधात्मक वस्तु नहीं है जिसका अपलाप किया जा सके। किसी भी पदार्थ का स्वरूपनिर्णय करने में चार ही कोटियों का प्रयोग संभाव्य है -

अस्ति (विद्यमान है),

नास्ति (विद्यमान नहीं है),

तदुभयम् (एक साथ ही अस्ति नास्ति दोनों) तथा

नोभयम् (अस्ति नास्ति दोनों कल्पनाओं का निषेध)।

परमार्थ इन चारों कोटियों से मुक्त होता है और इसीलिए उसके अभिधान के लिए "शून्य" शब्द का प्रयोग हम करते हैं। नागार्जुन के शब्दों में

न सन् नासन् न सदसत् न चाप्यनुभयात्मकम्।

चतुष्कोटिर्विनिर्मुक्त तेत्वं माध्यमिका विदु:॥

शून्यवाद की सिद्धि के लिए नागार्जुन ने विध्वंसात्मक तर्क का उपयोग किया है - वह तर्क, जिसके सहारे पदार्थ का विश्लेषण करते करते वह केवल शून्यरूप में टिक जाता है। इस तर्क के बल पर द्रव्य, गति जाति, काल, संसर्ग, आत्मा, आदि तत्वों का बड़ा ही गंभीर, मार्मिक तथा मौलिक विवेचन करने का श्रेय नागार्जुन को है।

इस मत में सत्य दो प्रकार का होता है -

(1) सांवृतिक सत्य तथा

(2) पारमार्थिक सत्य

जिनमें प्रथम अविद्या से उत्पन्न व्यावहारिक सत्ता का संकेत करता है

जाति शून्यता

https://brainly.in/question/41980132

निम्न आव्यूह की जाति और शून्यता ज्ञात कीजिये :

https://brainly.in/question/43764927

#SPJ2

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