'जुड़वा घाटा' संबंधित हैं (1) राजकोषीय घाटा + प्राथमिक घाटा (2) चालू खाता घाटा + राजकोषीय घाटा । (3) राजस्व घाटा + राजकोषीय घाटा (4) राजस्व घाटा + प्रभावी राजस्व घाटा
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सरल शब्दों में, यह सरकार के खर्च की तुलना में उसकी आय में कमी को दर्शाता है।
जिस सरकार का राजकोषीय घाटा अधिक होता है, वह अपने साधनों से ज़्यादा खर्च करती है।
इसकी गणना सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में की जाती है या आय के अतिरिक्त खर्च किये गए कुल धन के रूप में की जाती है।
किसी भी स्थिति में आय के आंँकड़े में केवल कर और अन्य राजस्व को ही शामिल किया जाता है तथा राजस्व की कमी को पूरा करने के लिये उधार ली गई धनराशि को शामिल नहीं किया जाता है।
विधि:
राजकोषीय घाटा = सरकार का कुल व्यय (पूंजी और राजस्व व्यय) - सरकार की कुल आय (राजस्व प्राप्ति + ऋणों की वसूली + अन्य प्राप्तियाँ )।
व्यय के घटक: सरकार अपने बजट में कई कार्यों के लिये धन आवंटित करती है, जिसमें वेतन, पेंशन आदि के भुगतान (राजस्व व्यय) और बुनियादी ढांँचे, विकास आदि जैसे परिसंपत्तियों का निर्माण (पूंजीगत व्यय) शामिल है।
आय प्राप्ति के घटक: आय घटक दो चरों (Variables) से मिलकर बना है, पहला, केंद्र द्वारा लगाए गए करों से उत्पन्न राजस्व और दूसरा, गैर-कर स्रोतों से उत्पन्न आय।
कर योग्य आय में निगम कर, आयकर, सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क, जीएसटी तथा अन्य से प्राप्त धनराशि शामिल होती है।
गैर-कर योग्य आय में बाहरी अनुदान, ब्याज प्राप्तियांँ, लाभांश और मुनाफा, केंद्रशासित प्रदेशों से प्राप्तियाँ आदि को शामिल किया जाता है।
राजकोषीय घाटा राजस्व घाटे से भिन्न होता है जो केवल सरकार के राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) और राजस्व प्राप्तियों (Revenue Receipts) से संबंधित है।
सरकार द्वारा पैसा उधार लेकर राजकोषीय घाटे की पूर्ति की जाती है । इस प्रकार एक वित्तीय वर्ष में सरकार की कुल उधार आवश्यकता उस वर्ष के राजकोषीय घाटे के बराबर होती है।
उच्च राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था के लिये लाभकारी
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